बोलों के देवता | Bolon Ke Devata
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सुमित्रा कुमारी सिन्हा - Sumitra Kumari Sinha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रात के गहरे अँघेरे में उड़ा जो
उस विहग को मिल मई प्रातः किरण भी!
ताप से मिल तरलता बस मेघ जाती
पेठता जो सिन्धु, पाता रत्न-थाती
भावना ऊँची लिये सागर-लहर भी
उछल कर हु क्षितिज की सीमा डुबाती
वरण जिसने कर लिया जीवन चिरन्तन
हो गया अनुगत सदा उसका मरण भी !
स्वप्न आते नींद के, दुग मींचने पर
लक्ष्य बेषे शर, धनुष को खींचने पर
शुष्क धरती के हृदय में बीज बो कर
लहलहा अंक्र निकलते सींचने पर
जो पथी चलता रहा विश्ञाम खोकर
स्नेह ने उठ कर उसे दी मधु-शरण भी !
न्धनो फौ भीख पाती मुक्तिका घन
प्रलय से ही झाँकता है सृष्ठि का तन
गंज उठते हँ भविष्यत्-प्राण उसके
भर चुका ह विगत सें जो सान निस्वनं
धूलि बनकर पंथ में जो बिछ गई हो
डस अगतिं पर उभर जते गसि-चरणः भौ ।
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