भारतीय दर्शन में चेतना का स्वरुप | Bharatiya Darshan Mein Chetana Ka Svarupa

Bharatiya Darshan Mein Chetana Ka Svarupa by श्री कृष्ण सक्सेना - Shri Krishna Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~~~ ~~~ ~~~ ~~~ ~ ~~ क [1 पएस्‍िजगरओ 75 + .---~ ~ ~ ~^ +~ +~ -- ~~~ ( ७ ) परिस्थितियों में एक दूसरे से प्रत्यन्त दुर, जसे विलियम जेस्स श्ौर बुद्ध, हा.म की तरह के श्राधुनिक संदेहवादी श्रौर प्राचीन माध्यमिक दाशेनिक नागाजुन या धर्ंकीति, श्राज का विषयीगत प्रत्ययवादी और श्रतीत के योगाचार प्रत्ययवादी श्रादि के विचारों में हमें सुददर समानान्तरता के श्रदूभुत उदाहरण देखने को मिलते हैं। किसी प्राचीन हिन्दू या बौद्ध ग्रन्थ की देखते संमय इस तरह की समस्याश्रों पर दृष्टि प्राय: चली जाती हैं जिन्ह कि इस तरह की प्रणाली मे विवेचितं तथा प्रस्तुत किया गया है कि उनमें तथा किसी प्रति श्राधुनिक प्रन्थ की विवेचन-विधि में भेद करता सम्भव नहीं रह जाता है। किन्तु, किसी भी तुलना के पूर्व, किन्‍्हीं भी दो विभिन्न दर्शनों का उनके विशिष्ट व्यक्तित्वों में श्रद्योपान्त ज्ञान अत्यन्त महत्वपूर्ण है, श्रन्यथा, इन्हीं समानताओं पर ग्राधारित तुलनात्मक शअ्रध्ययन का दोनों के रूप को भ्रष्ट करने के लिए पतित हो जाने का सहज ही खतरा हैं। कारण यह है कि किसी विशिष्ट संस्कृति का प्रत्येक दर्शन स्वयं अपनी श्रात्मा लिए हुए है । उसकी श्रपनी व्यक्तिगत मेधा है, जो किसी समस्या का अपनी विशेष रीति से सृजन करती तथा प्रतिक्रियान्वित होती है। किसी भी दर्शन की बयक्तिकता के इस तथ्य की, उस दर्शन के विशिष्ट गुणों को मटियामेट किये बिना, हम उपेक्षा नहीं कर सकते । | दस कारण बादकी संभाव्य संश्लेषण की अ्रवस्था के लिए, प्रारम्भिक चरण के रूपमे, किसी संस्कृति को प्रत्येक प्रतिनिधि विचारधारा श्रपूवंश्रौर विभेदक चारित्रिक गुणो की, इसके पूर्व कि उनकी ओर पुनः पहुँचने का प्रयत्न किया जाय, खोज निकालने का प्रयास अत्यन्त आवश्यक है । इसलिए, वैयक्तिक समध्ययन श्रौर भेद-निषूपण कौ प्रणाली, जो किं तुलनात्मक अध्ययन की श्रोर एक नई पहुँच को प्रस्तुत करती है, विभिन्न दर्शनों के ज्ञान की हमारी वरतंमान श्रवस्था में, छिछली श्रौर श्रसावधानीपुर्ण साहश्यताश्रों की प्रणाली से कहीं श्रधिकं उपयुक्त है ।* मैंने, इसलिए, चेतना के प्रति हिन्दू ग्रन्थों में बिखरे हिन्दू हृष्टिकोश का उसके वैयक्तिक तथा विभेदक लक्षणों में, श्राधुनिक या पाश्चात्य हृष्टिकोश की तरह प्रस्तुत करते का प्रयास किये बिना, एक स्वत्न्त्र श्रौर श्लालो- चनात्मक भ्रध्ययन किया है। वाद-विवाद संवाद के हिन्दू विधिशास्रीय रूप को विभिन्न प्रश्नों के सृत्नीकरण में, जहाँ तक व्यावहारिक हो सका है, धृरक्षित रखने का प्रयत्न भी किया गया है। चेतना के स्वरूप से सम्बद्ध कुछ श्राधार- १. द्रष्टव्य बी० हेमन इस्डियन एण्ड वेस्टर्न फिलास्फी ।




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