भारतरत्न डाक्टर भगवानदास | Bharat Rattan Dr. Bhagvan Dass

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Book Image : भारतरत्न डाक्टर भगवानदास  - Bharat Rattan Dr. Bhagvan Dass

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहुला अध्याय वं का इतिहास अपने देश मेँ एतिहासिक मचोवृच्ति विल्कल नही रही जिसका परिणामं यह्‌ हुआ कि हमने अपने पुराने इतिहास को प्रायः खो दिया ¦ दैनन्दिनी लिखने की अपने यहाँ प्रथा ही नहीं थी । देश के बड़े से बडे नुपतियों, योद्धाओ्नों, कवियों, सच्तो के नाम से तो हम कुछ-कुछ परिचित हैं, पर हमे पता नहीं कि वे किस समय रहे और उनका जन्म अथवा देहावसान कब हुआ, और उनका कार्यभेत्र कहाँ रहा ? यदि इसका प्रता होत्ता तो उनके समय को मामाजिक श्रौर राजनीतिक दणा का भी हमे हाल लग जाता । मुसलमानों में ऐतिहासिक भावता थी और इतिहासवेत्ता अलवेख्ती ने हमारी इस त्रुटि का उल्लेख भी किया है। पीछे अंग्रेज विद्वान मेकाले ने भी ऐसा किया । भुगल सम्राट बावर अपनी दैनच्दिनी छोड गए हैं। अग्रेनो मे तो दैनन्दिनी लिखने की साधारण प्रथा है । यूरोपीय पुरातत्व-वेत्ताओं ने पुराने सिक्को, सूर्तियो, भवनों के भग्नावशेयों के अध्ययन से हमारे पुराने इतिहास का पता लगाया है। इनसे प्रेरणा प्राप्त कर हम भी इतिहास के प्रति प्रेम करने लगे हैं और पुरानी बातों को जानने के इच्छुक हो गये हैं। यह स्वाभाविक बात है फि इस प्रसंग मे अपने कुटुम्व॒ के पूर्वजों और उन्तकी कृतियों को जानते का हमे कृतृहल हो । साथ ही, हम हिन्दू अपनी जाति अथवा उपजाति की उत्पत्ति और उसका इतिवृत्त जानने की इच्छा करे | ऐसी भावना विशेषकर उस समय' उत्पन्न होती है जब कोई विशिष्ट पुरुष किसी कुल या जाति मे उत्पन्न होता है और विशेष ख्याति आप्त कर ग्रपने कुल अथव्ग जाति, उपजानि को गौरवान्वित करता है | मेरे हृदय से भी अपने पिता डाक्टर भगवानवास के व्यक्तित्व को देखकर भर उनकी कृतियों का निकट से परिचय पाकर ऐसी ही भावना उत्पन्न हुईं। हमारा कुल हिन्दुओं के वैश्य वर्ण के अच्तर्गंत अग्रवाल जाति का माना जाता है । इसकी उत्पत्ति के स्थान के सम्बन्ध में बहुत से विद्वानों ने अनुतवान किया है और साधा रणत इसी परिणाम पर पहुचे हैं कि पजाब के हिसार जिले के अग्रोह्म नाम के




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