आचार्य बुध्द्घोष | Acharya Buddhaghosh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
767
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भिक्षु धर्मरक्षित - Bhikshu dharmrakshit
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( र३ )
मुदन्तखेदक शब्द से बुद्धघोष के उत्तर भारतीय नहीं होने का सन्देह करना समुचित नहीं, क्योंकि
यह स्पष्ट नहीं है और दीघनिकाय, सज्श्िम निकाय, संयुत्त निकाय, अगुत्तर निकाय, ख़ुदक निकाय
आदि ग्रन्थों की किसी भी अद्कथा में यह शब्द उपलऊूव्ध नहीं हे ।
बुद्धघोष ने मज्मिम निकाय की अहकथा में लिखा है --
''आयाचितो सुमतिना थेरेन भदन्त चुदछ्धमित्तेन |
पुव्वे भयूरखत्तपन््टनम्हि सदधि वसन्तेन ॥
पश्वादिवाद्चिद्धंखनस्ख मच्छिमनिकायसेद्धस्स 1
यमदं पपञ्चसुदनियद्धकथं कातुमारद्धो ॥”
इससे प्रकट ्ोता है करि बुद्धघोप रुका जाने से पूर्व मयूरसुत्त बन्दरगाह पर भदन्त
बुद्धमित्र के साथ कुछ दिन रहे थे और उनकी प्रार्थना पर ही उन्होंने सज्झिसम निकाथ की
अहकथा लिखी ।
अगुत्तर निकाय की अहकथा से प्रगट है कि पहले चुद्धघोष काब्जीवरस मे भदन्त
ज्योतिपाक के साथ रहे थे और उन्हीं की प्रार्थना पर उन्होंने मनोरथपूरणी को लिखा ।
“आयाचितो सुमतिना थेरेन भदन्त जोतिपालेन |
कश्चीपुरादिस भया पुषच्चे सद्धि वसन््तेन॥
चर तब्वपण्णिदीपे महाविद्यारस्दि वसनकाछेपि।
वाताहते विय दुमे प्युज्जमानम्हि सद्धस्मे ॥
पारं पिरकत्तयसागरस्स गन्त्वा टितेन सुव्वत्तिना ।
परिखुद्धाजीवेनाभियाचतो जीवकेनापि ॥
धस्मकथानयनिपुणेदि घम्मकथिकेदि शपरिमाणेदि ।
परिकीडितस्स पटिपल्जितस्स सकसमयनि घ्रस्स ॥
জভুন্ধগ্ अगुत्तर निकायस्स कातुमारद्धौ |
यमहं चिरकारुद्धित्तिसिच्छन्तो सासनवरस्स ॥
पेखा लान पठता है विः जुधघोप चुद्धगया से प्रस्थान कर दक्षिण भारत होते हुए लंका गए
थे और मार्ग में अनेक विहारो से उन्होंने निवास किया था तथा अपने ऊछका जाने का उद्देश्य भी
वो के भिष्ठुजो से कहा था। उन भिक्षुओं ने उनके उद्देइय को जानकर उनकी प्रशसा की थी और
अह्ुृकथाओं को लिखने की मी प्रार्थना की थी । बुद्धघोप ने काञ्जीवरम् , मयुरसुत्त चन्दरगष्ह के
विहार आदि में कुछ दिन व्यतीत किया था। वहाँ पर उन्हे मिशक्षु चुद्मित्र तथा भदन्त ज्योति-
पाल से लंका जाने से पूर्व द्वी सेंट हुईं थी ।
आचार्ये-परस्परा और रूफा का इतिहास भी इसी वात की पुष्टि करता है । बुद्धघोसुप्पत्ति
नामक अन्थ से छिसा है---/पुब्बाचरियान सन्तिका य्रथापरियर्ति पन््जाय” अर्थात् पूर्व के आचायों
के पास पर्य्याप्ति-्धर्म को सली प्रकार जानकर इस अन्य को दिखा गया ह । तास्पर्य, जितने भी
पतिहासिक अथवा परम्परागत सूत्र हैं, सभी उुद्धयोप को उत्तर भारतीय ही मानते हैं ।
बर्मा के आचारयों का कथन है कि छुद्धघोप सिंदरी अद्दकधाओं को छिखने के पश्चात् धर्म-
भचारार्थं बां गये अर वरँ वहन दिनो तक रषे ! किन्तु, इस वात का उच्छ किमी इंतिहास-
भन्ध से नहीं मिलतः चौर न दो जनश्रुति के अतिरिक्त दूसरा शी कोई श्रमाण इस सम्बन्ध मे সাথ
क ~
User Reviews
No Reviews | Add Yours...