भारत निर्माता भाग २ | Bhaarat Nimartaa Bhaaga 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42 MB
कुल पष्ठ :
253
श्रेणी :
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No Information available about कृष्ण वल्लभ द्विवेदी - Krishn Vallabh Dvivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इस विद्रोही का सामना करने के लिए कमर बाँधचना
शुरू किया। सबसे पहले मद्रास के गवनमेण्ट
कॉलेज के शंकर शास्त्री नामक किसी अध्यापक ने
दिसंबर, १८१६ हे०, के मद्रास कूरियर' नामक
अंग्रेज़ी पत्र मे कठु आलोचना करते हुए उन पर
आक्रमण किया, जिसका पत्य॒ुत्तर राममोहन ने
डिफ़ेन्स आफ़ हिन्दू थीइउम' ( अर्थात् हिन्दू
आएस्तिकवाद का मण्डन ) शीपक अपनी सुप्सिद्ध
अंग्रेजी रचना द्वारा दिया। इसके शीघ्र ही बाद
मद्रास के पंडितों का पत्त लेते हुए स्वयं उनके ही
अपने प्रान्त बंगाल के कई धर्मध्वजी गोस्वामी रौर
भद्दाचाय भी एक साथ ही उन पर टट पड़े । इस
प्रकार मूत्तिपूजा ओर बहुदेवोपासना के पक्त-विपत्त
मं वाद-विवाद का एक घोर संग्राम-सा लिड गया,
जिसमे एक ओर थे अकेले राममोहनराय, जो अपने
गहन शास्त्र-्ञाान ओर श्रकास्य तकं कै बल पर
प्राचीन भारतीय धर्म के अनुसार केवल एक ही
निग र ब्रह्म का प्रतिपादन कर हमारी धर्म-मंदाकिनी
में बाद को उत्पन्न दो जानेवाली पकरूपी श्रध भाव-
नाओं का खंडन कर रहे थे, तो दूसरी ओर हर
प्रकार के प्रगतिशील परिवत्तन की राह में रोड़ा
अटकाने के लिए उद्यत हमारा वह कट्टर अंथ
समाज था, जिसकी एकमात्र युक्ति थी उन रुढ़ियों
की दुहाह देना, जो शास्त्रों से भी अधिक उनके
मन पर अपना आईधिपत्य ज़माए हुए थीं।
इसी वीच हसाई मत के तिमृत्तिवाद और ईसा
मसीह की अलोकिकता के प्रश्न को लेकर कलकत्ते
के समीप सीरामपुर मे अड़ा जमाए हुए विदेशी
इसाई मिशनरियों के साथ भी उनका एक लम्बा
ओर कटु विवाद छिड़ गया। बात यह हुईं कि
सभी धर्मा कर शाश्वत सन्य के प्रति श्रद्धा का भाव
रखनथाले उदारमना राममोहन ने अपने एक ईसाइ
मित्र पादरी आदम ओर अन्य एक योरपीयन की
संदायता से वादइवल के कुछ अशा का बंगला मे
अचुवाद करने के अलावा अलग से সজল
आऑफ़ जीसस' (अर्थात् ईसा के घर्म-नियम) के नाम
स॑ एक अंग्रज़ी पुस्तक सन् १८२० ई० मे प्रकाशित
का थ, (असम उन्होंने बाइविल में से ईसा के
प्रमुख उपदेशों को चुनकर एक संकलन के रूप में
प्रस्तुत करने का प्रयास किया था। इस संग्रह में
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उन्होंने बाइबिल के ऐसे अंशों को जानबूभकर छोड़
दिया था, जिनमें किसी प्रकार के अलोकिक चम-
त्कारों अथवा अन्य करामातों का उल्लेख था।
कारण, एक तो হুল चातोँ म उनका विश्वास न था,
दूसरे हमारे लिए इन वातों का कोई महत्त्व भी न
था । परन्तु यद कोट-छोट भला उन धर्मान्थ मिश-
नरियों को क्योंकर सहन हो सकती शी ! उन्टौनि
इस चेष्ठटा से रुष्ट होकर फ्रेंड ऑफ़ इबन्डिया'
ओर “समाचार-दर्पण” नामक अपने पत्रों मे अत्यन्त
कटुतापू्वक राममोहनराय पर घावा बोल दिया।
साथ ही मानों बदला चुकाने के लिए हिन्दू धर्म ऑर
संस्क्रांत पर भी अशोभनीय रीति से कीचड़ उछा-
लना शुरू किया। पर राममोहन इन प्रहारों से दब
जानेवाले व्यक्ति न थे । उन्होंने जहाँ एक ओर
'ए सेकरड डिफ़ेन्स ऑफ़ दी मॉनोथीस्टीकल
सिस्टम ऑफ़ दी वेदाज़” ( अर्थात् बेदों के एकेश्वर-
वाद का पुनमंगडन ) शीपषक एक ट्रंक्ट लिखकर
अपने सहधथर्मी आलोचकों का मु ह बन्द कर दिया,
वहाँ दूसरी ओर अपने नवसंस्थापित “्राह्मनिकल
मगैजीन' नामक अंग्रेज़ी पत्र भ ईसाई जगत् के
नाम ऋमश:ः अपनी तीन प्रसिद्ध अपीले' निकाल-
कर न केवल इन मिशनरियों के मिथ्या आरोपों का
ही। करारा जवाब दे दिया, बल्कि ईसाई धर्म-
सम्बन्धी अपने गहन ज्ञान का परिचय देकर खदु
अमेरिका आर इंगलेगडइ तक के धमर्मशास्त्रियों की
आंख खोल दीं !
उनके इस विवाद का उनके अन्तरग मित्र पादरी
आदम पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि वह
सीरामपुर के ट्रिनिटेरियन! (त्रेमू क्तियादी ) चर्च से
किनारा कसकर “यानटारयन ( एकश्वरवादी )
न गया ओर अ्रपन कुछ मित्रां क सहयोग से
उसने कलककत्त म एक पृथक यानरारयन उपासनालय
भी प्रस्थापत कर लिया, जिसकी नियमित प्राथ-
नाओं भे राममोहन भी शरीक होने लगे। इस पर
लोगों म यद भ्रम फैलने लगा कि वह ( राममोहन-
राय ) विधिवत् ईसाई वना लिये गए | परन्तु
राममोहन-जेसे उदारचेता महापुरुष का व्यक्तित्व
भला साधारण जनों की समझ में क््योंकर आ
सकता था-वह कोई मामूली व्यक्तित्व तो था
नदीं | वस्तुतः यह मान सत्यान्वेषक यदि किसी
भारत-निर्माता .
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