भारतीय सभ्यता और उसका विश्वव्यापी प्रभाव | Bharatiya Sabhyata Aur Usaka Vishvavyapi Prabhav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ॐ भारतीय संस्कृति की प्राचीनता पताका फरार थी, इस बात को प्रायः सब ही विद्वानों ने स्वीकार किया है कि प्राचीन संसार के अनेक देश अपने शान शरोर सभ्यता के लिए भारतवासियां के ऋणि हैं। सुप्रख्यात फ्रेच विद्वान क्रोकर ने लिखा हे--“अगर इस भरूमएडल पर ऐसा कोई महान देश हे, जो मानव-जाति के आचस्थान ओर श्ञानदाता होने का गौरव रखता है, तो वह देश निस्संदेह भारतवषं हे कनल टॉड साहब अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ “राजस्थान का इतिद्दास” में लिखते हैं कि--“हम उन षि को अन्यत्र कहाँ पा सकते हैं, जिनके दर्शन-शास्त्र श्रोस के आदर्श थे, जिन करे मन्थो के श्रेरो, भेल्स ओर पाईथागोरस शिष्य थे | हम उन ज्योतिषियौ को कहाँ पा सकते है, जिनका गरह-मरडल सम्बन्धी ज्ञान अब भी यूरोप में आश्चर्य उत्पन्न करता है; हम उन कारी गरो ओर सूतिकारों को कहाँ पा सकते हैं जिनके काय्ये हमारी ` अशंसा के पात्र हैं। हम उन गायकौ को कहाँ देख सकते ই, जो मनुष्य को दुख से आनन्द में दोड़ा सकते है, ओर आँसुओं को मुसकराहट में बदल सकते हैं।” एक फ्रेन्च परिडत ने कहा है--“तेजस्वी, सुसभ्य ओर जनसमूह परिष्ठत छः हजार बर्ष के भारतवर्ष ने मिश्र, ईरान, ग्रीस और रोम आदि देशों पर अपनी संस्कृति का जबरदस्त सिक्का जमाया था। मतलब यह है कि प्राचीन भारत संसार का प्रकाशदाता ओर सभ्यता चथा संस्कृति का आदि जनक था। फिनस्यन साहब अपने इतिहास में लिखते है कि संसार भं श्रव तक जो सब से प्राचीन सिक्के मिले हैं, वे भारतवासियों के थे। অহ भी भारतीय सभ्यता की प्राचीनता को प्रकटः




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