रामकृष्ण | Ramakrishn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रामकृष्णं + १६ नैतिक व सामाजिक है । यह अतीत भारत के गर्म से वर्तमान मानवता के लिए सन्देश वहन करके लाई है । ' यद्यपि इत दोनो जीवनो की दर्दनाक कहानी का अपरूप काव्यमय सौदर्य तथा होमरिक” गास्मीर्य हो यह स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है (जैसा कि आप स्वय लक्षय करोगे) कि मने जपि लोगो को दिखाने के लिए, इन दो जीवनो के गतिपथ के अन्वेषण, व सन्धान मे अपने दो वर्षं क्यों व्यतीत किए हैं, तथापि मैं यह कहना उचित समञ्चता हूं कि केवल एक साहसी अन्वेपक के कौतृहलवश मैं इस यात्रा मे प्रवृत्त नही हुआ हूँ । में एक उपस्यास लेखक नही हैँ, जो कि क्लान्त व थके हुए पाठको को आत्मविस्मृत करने के लिए लिखता है । मैं इसलिए लिखता हूँ कि जिससे मेरे पाठक अपने मापको खोज सके, मिथ्या के गावरण से मूक्त अपनी सत्ता को, अपने स्वरूप को पहचान सके । मेरे जीवित या मृत सभी सहयात्री इसी लक्ष्य को लेकर अग्रमर हुए हैं, और मेरे निकट शताव्दियो व जातियो की सीमाओ का कोई अर्थ नही है । आवरणमुक्त आत्मा के लिए प्राच्य च प्रतीच्य का कोई बन्धन नही है, ये वस्तुं उसके बाह्य आवरण मात्र हँ । समस्त विश्व ही आत्मा का निवासस्थान ह 1 और हममे से प्रत्येक मे ही जब आत्मा का निवास है, तव हम सभी उसके समान अधिकारी ह । जिस आत्तरिक विचार ने मुझे इस ग्रन्थ की रचना के लिए प्रेरित किया है, उसका मूल स्रोत कहा है, इसकी व्याख्या करनं के लिए यदि रम अपने-मापको कुछ क्षण के लिए रगमच पर लाता हूँ, तो आशा है, पाठकगण मुझे क्षमा करेगे। केवल हदृष्टान्त के लिए ही में ऐसा कर रहा हूँ, क्योकि वास्तव में मैं कोई असा- वारण पुरुष नहीं हूँ । में एक अत्यन्त साधारण फ्रासीसी हूँ । मैं जानता हूँ कि मैं उन हजारो पश्चिम देशवासियों का, जिनके पास अपने को प्रकट करने के न साधन हैं, और न समय ही है, एक प्रतिनिधि मात्र हैँ । जब हमसे से कोई व्यक्ति अपने आपको मुक्त करने के लिए अपने हृदय के गरभीरतम अन्त.प्रदेश से कुछ कठ्ठता है, तो उसका वह शब्द उन हजारों मूक कण्ठस्वरो को ही मुक्त करता है। इसलिए आप मेरी आवाज को नही, अपितु उन्ही के कण्ठो की प्रति- ध्वनि को सुने । मध्य फ्रास के जिस अचल मे मेरा जन्म हुआ है, और जहाँ मैंने अपने बच- १ ग्रीक महाकवि होमर के काव्य से जो महान गास्मीर्य देखा जाता है, उसके समान । ।




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