शेर-ओ-शायरी | Sher-O-Shayari
श्रेणी : गजल व शायरी / Shayri - Ghajal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
688
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अयोध्याप्रसाद गोयलीय - Ayodhyaprasad Goyaliya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गाने या मनचाहे भाव, मनभावते शब्दों और छन्दोंमें व्यक्त करनेका
नाम ग़ज़ल नहीं है। यदि जिन्नाका जीवनचरित्र, रेलगाड़ीका वर्णन,
सास-बहुके कगड़ेकी कविता रामायण कहला सकती हूँ, तो ये प्रयत्न
भी ग़ज़ल कहला सकते हैं।
१६२९में एक ख्याति-प्राप्त आशुकवि नजीबाबाद पधारे। मुझे
भी उनकी यह अ्रद्भूत कला देखनेंका सौभाग्य प्राप्त हुआ | सचमुच
ही उन्होंने तत्काल समस्या-पूत्ति करके जनताको मंत्रमुग्ध कर दिया ।
कई एक उर्दू-साहित्यिक भी उनकी प्रतिभाकी भूरिभूरि प्रशसा कर
रहे थे कि उनको जो लन्तरानीकी सूभी तो লী গন উল उर्दू ग़ज़लोंके
मिसरॉपर गिरह लगायेंगे । मिसरे दिये गये तो ऐसी भोण्डी और उप-
हासास्पद तुक लगाई कि हिन्दी-हिंतैपियोंकी गर्देनें कूक गईं। वे मिसरों-
पर गिरह क्या लगा रहे थे, अपने हाथों अपने कीत्तिका शव पीट रहे थे ।
इसी प्रकारकी हरकतें में ४-५ कवियोंकी और देख चुका हूँ । भरी
सभामें जब उर्दू-साहित्यिक भी बड़ी तनन््मयतासे हिन्दी-कविताका रसा-
स्वादन कर रहें थे, हिन्दीकी मधुरता, शैली, उपमा, अलंकार आदिकी
मक्त कण्ठसे दाद दे रहे थे, तभी कवि महोदयने अ्रकस्मात हिन्दी-उर्दू-
मिश्रित तुकबन्दी प्रारम्भ कर दी। और तुकबन्दी भी कैसी ? जिसे
चवन्निया क्लास सिनेमा-त्रेमी भी गुनगुनाते हिंचकिचाएँ। उदू-खदीव
मुँहमें रूमाल देकर हँस रहे हे, और वनानेके लिये वाह-वाकी भूठी दाद
दे रहे है। हिन्दी-हितेपी पानी-पानी हुए जा रहे हैं; किन्तु कवि हैं कि
न वे आँखके इशारेको समभते हे, न चिट पढ़ते हें, और न घंटीकी परवाह
करते ह । श्रपनी रामधुनमें श्रजित की हुई समस्त कीत्तिको चौपट
किये जा रहे है ।
उफ ! री शबनम { इस क्रदर नादानियाँ ?
सोतियों को घास पर फैला दिया)!
--आराग़ा शाइर देहलवी
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