शेर-ओ-शायरी | Sher-O-Shayari

Book Image : शेर-ओ-शायरी  - Sher-O-Shayari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाने या मनचाहे भाव, मनभावते शब्दों और छन्दोंमें व्यक्त करनेका नाम ग़ज़ल नहीं है। यदि जिन्नाका जीवनचरित्र, रेलगाड़ीका वर्णन, सास-बहुके कगड़ेकी कविता रामायण कहला सकती हूँ, तो ये प्रयत्न भी ग़ज़ल कहला सकते हैं। १६२९में एक ख्याति-प्राप्त आशुकवि नजीबाबाद पधारे। मुझे भी उनकी यह अ्रद्भूत कला देखनेंका सौभाग्य प्राप्त हुआ | सचमुच ही उन्होंने तत्काल समस्या-पूत्ति करके जनताको मंत्रमुग्ध कर दिया । कई एक उर्दू-साहित्यिक भी उनकी प्रतिभाकी भूरिभूरि प्रशसा कर रहे थे कि उनको जो लन्तरानीकी सूभी तो লী গন উল उर्दू ग़ज़लोंके मिसरॉपर गिरह लगायेंगे । मिसरे दिये गये तो ऐसी भोण्डी और उप- हासास्पद तुक लगाई कि हिन्दी-हिंतैपियोंकी गर्देनें कूक गईं। वे मिसरों- पर गिरह क्या लगा रहे थे, अपने हाथों अपने कीत्तिका शव पीट रहे थे । इसी प्रकारकी हरकतें में ४-५ कवियोंकी और देख चुका हूँ । भरी सभामें जब उर्दू-साहित्यिक भी बड़ी तनन्‍्मयतासे हिन्दी-कविताका रसा- स्वादन कर रहें थे, हिन्दीकी मधुरता, शैली, उपमा, अलंकार आदिकी मक्त कण्ठसे दाद दे रहे थे, तभी कवि महोदयने अ्रकस्मात हिन्दी-उर्दू- मिश्रित तुकबन्दी प्रारम्भ कर दी। और तुकबन्दी भी कैसी ? जिसे चवन्निया क्लास सिनेमा-त्रेमी भी गुनगुनाते हिंचकिचाएँ। उदू-खदीव मुँहमें रूमाल देकर हँस रहे हे, और वनानेके लिये वाह-वाकी भूठी दाद दे रहे है। हिन्दी-हितेपी पानी-पानी हुए जा रहे हैं; किन्तु कवि हैं कि न वे आँखके इशारेको समभते हे, न चिट पढ़ते हें, और न घंटीकी परवाह करते ह । श्रपनी रामधुनमें श्रजित की हुई समस्त कीत्तिको चौपट किये जा रहे है । उफ ! री शबनम { इस क्रदर नादानियाँ ? सोतियों को घास पर फैला दिया)! --आराग़ा शाइर देहलवी ~ १७ -




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