समयसार | Samayasaar

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Samayasaar by श्री कुन्दकुन्दाचार्य - Shri Kundakundachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाथा स० ११४ ११५ ক প্র ५ विषय व्यवहारनय सेजीव कर्मो को उपजाता है, करता है, बधिता है, परिलमाता है, ग्रहण करता हं । जैसे व्यवहार से राजा प्रपनी प्रजा मे दोष श्रौर गण का उत्पादक होता है वैसे ही व्यवहार से जीव पुद्गल को कम रूप करने वाला हं । ११६-११६ समुदाय पातनिका १२०-१२्‌ १२३-१२५ १२६--१३० मिथ्यात्व प्रादि प्रत्यय पौदूगलिक कर्मोदय से उत्पन्न होने के कारण प्रचेतन है श्रौर ये प्रत्यय ही कर्म बध के कारण है। भात्मा कर्मो का भाक्ता नहीं है जैसे स्त्री पूरुष के सयोग से पुत्र उत्पन्न होता है वेसे ही जीव पुदुगल के सयोग से मिथ्यात्व रागादि होते है । विवक्षा वश कोई जीव के भ्रौर कोई पुदुगल के कहता है एकात से न जोव के है न पुदुगल के । हल्दी चूने के सबंध से लाल रग की तरह भ्रशुद्ध निश्वय नय से रागादि चेतन है, शुद्ध निश्चयनय से चेतन है। सूक्ष्म शुद्ध निश्चय नय से रागादि का भ्रस्तित्व ही नहींहै। यदि व्यवहार नय से भी जीव रागादि का श्रकर्त्ता हो तो ससार का ग्रभाव हो जायगा । जिस प्रकार जीव के साथ ज्ञान दर्शन की एकता है उस प्रकार क्रोध की एकता नही है, यदि एकता हो तो जीव श्रजीव एक हौ जायेगे, कोई भेद नही रहेगा । शुद्ध निश्चय नय से जीव रागादि का भ्रकर्ता प्रमोक्त तथाभिन्न है किन्तु व्यहारनय से कर्ता भोक्ता ब श्रभिन्न है । निश्वयनय व व्यवहारनय मे परस्पर सापेक्षपना है। द्रव्य कर्म काकर्ताश्रसद्भ त ग्यवहारनयसे है श्रौर रागादि काकर्ता प्रशुद्धनिश्वयनय से है यह भी शुद्धनिश्चयनय की भ्रपक्षा ग्यवहार है । पुद्गल द्रव्य कथचित परिणामी है । सवथा श्रपरिणामी मानने पर ससार का श्रभाव हो जायगा | यदि पुद्गल श्रपरिणामी है तो जीव उसको हाते नही परिणामा सकता क्योकि दूसरा द्रव्य शक्ति नही दे सकता । यदि वस्तु शक्ति दूसरे को श्रपेक्षा नही रखती ऐसा माना जाय तो घट पट झ्रादि पुदृगल भी कर्म रुप परिणाम जावेगे झत कर्मो का उपादान कर्ता पुदूगल है श्रौर निरमित्त कारण जीव है । भेद रत्नत्रय साधक होने उपादेय है। यदि जीव कर्मों से वद्ध नही है तथा क्रोध श्रादि रूप नहीं परिणमता तो অনা কষা সলাত हो जायगा । श्रपरिणामी जीव को पुद्गल कमं क्रोध रूप कंसे परिणमा सकता है। स्वय आत्मा क्रोध आदि रुप परिणमता हुआ उस रुप हो जाता है पृष्ठ स ६८ ६९ १००-१०१ १०३ १०४ ९०४




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