तीर्थकर चरित्र भाग - 1 | Teerthakar Charitra Bhag - 1

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Teerthakar Charitra Bhag - 1 by रतनलाल डोशी - Ratanlal Doshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ ` तीर्थकर चरित्र শক” শিস कः पीपी किया । मै उस प्रसंग को भूल ही गया धा । अव म परलोक को मान्य करना हँ । भव मुम अपके धमे-वचनो मे कुछ भी गका नही रही 1 राजा के ऐसे आस्तिकता पूर्ण वचन युन कर स्वयवुद्ध मन्‍्त्री हपित हआ भौर कटने छगा , -- “ महा राज । आपके वश मे पहले कुरुचन्द्र नाम का एक राजा हो गया है। उसके कुरुमती नाम की रानी और हरिश्चन्द्र नाम का पुत्र था | कुरुचन्द्र राजा मद्भापापी, महा- आरभी, महापरिग्रही, अनार्य, निर्दय, दुराचारी मौर भयकर था } उसने बहुत वर्षों तक राज भोगा, कितु मरते समय धातु-विकृति के रोग से वह्‌ नरक के ममान दरस भोगने लगा । उसे रुई के नरम गदेे आदि कांटोकीरय्या सेभी अत्ति तिक्ष्ण लगने लगे । सरन भोजन बिलकुल निरस, कड्मा, सुगन्धित पदाथं दुगन्धरूप ओर स्व्री-ण् आदि स्वजन भी शत्रु के समान लगने लगे । उसकी प्रकृति ही विपरीत ओर महा दु दायक हो गई थी । अन्त मे दाह्ज्वर से पीडित हौ कर रौद्र-ध्यानपूरवंक मृत्यु पा कर दुर्गति में गया ।' कुरुचन्द्र की मृत्यु के बाद हरिइचन्द्र राजा हुआ | उसने अपने पिता के पाप का फल प्रत्यक्ष देख लिया था । इसलिए वहु पाप से विमु हो कर धर्म के अभिमख हुआ । उसने अपने सुबुद्धि नाम के श्रावक मित्र से कहा --“ मित्र ! तुम्हारा कत्तव्य ह कि तुम धर्मो पदेशा सुन कर मेरे पास आओ ओर रोज मु सुनाया करो 1 इस प्रकार पाप से भयभीत हुआ राजा धर्म के प्रति प्रीतिवान्‌ हो कर धर्म सुनने लगा और उस पर श्रद्धा रखने लगा । कालान्तर मे नगर के बाहर उद्यान मे, शीलन्धर नाम के महा मुनि को केवलजान उत्पन्न हुजा । देवंगण केवसज्ञानी महात्मा के पास जाने लगे । सुतुद्धि श्रावक, अपने লিঙ্গ महाराज हरिख्चन्द्र को भी केवलज्ञानी भगवान्‌ के पास के गया । धर्मोपदेश्च सून कर राजा सतुष्ट हुमा । उसने केवली भगवान्‌ से पूछा, --- “ भगवन्‌ । मेरा पिता मर कर किस गति मे गया ? “ राजन्‌ । सातवी नरक मे गया 1” राजा विरक्त हुआ ओर पुत्र को राज्यभार सौप कर, सुबुद्धि श्रावक के साथ भगवान्‌ के पास भ्रत्नजित हुआ और चारित्र पाल कर सिद्ध-गति को प्राप्त हुआ । स्वयबुद्ध प्रधान आगे कहने लगा, - “ महाराज । आपके वश मे एक “दंडक” नाम का शासन प्रचण्ड था । शत्रुओं के लिए वह यमराज के समान था का पुत्र था। वह सूं्ये के समान तेजस्वी था। दंडक राजा, स्त्री राजा हुआ था। उसका । उसके 'मणिमाली ` नाम , पुत्र, स्वर्ण, रत्तं आदिमे




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