देवेन्द्र चरित | Devendra - Charit

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Devendra - Charit by अजित प्रसाद - Ajit Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ देवेन्द्र चरित लेखक बन सकता है | उनका यह सिद्धांत था कि पुस्तक की सफलता के हेतु विषय और भाषा की भाँति उसको छपाई को उत्तमता परमावश्यक है। चित्त का पहली बार आकपंण करने के निर्मित्त शरीर का सोंदय आवश्यक है, फिर तो उस व्यक्ति के गुण हृदय में स्थान जमा लेते हैं। यही द्वाल पुस्तक का है। यदि हिंदी में प्रकाशन-कला का इतिहस लिखा जाय, तों उनको बहुत ऊँचा स्थान मिलेगा । क्राशन-काय में वह হালি-ভাম का विचार नहीं रखते थे । ग्रंथ को उत्तम छपाई हो उनका मुख्य ध्येय था । प्रकाशन उनका ज्यवसायन था, बरन्‌ व्यसन था । जब आप एफ़० ९० की परीक्षा देने जाते, तो अन्य विद्यार्थियों की भाँति पाल्य-मर्थो का बक्ता बाँधकर नहीं ले जाते थे, न वह इस खोज-बोन में रहते थ कि आज़ क्या पर्चे में आवेगा। वह अपने साथ अपनी प्रकाशित पुस्तकों के प्रफ्॒ ले जाते थे, जिनका कि वे परीक्षा को घंटों बजने तक संशोधन करते रहते थे। उन्होंन दिदी-पुस्तकों के प्रकाशन हो में सफलता नहीं दिखाई थी, बरन्‌ अगरेज़ी-पुस्तकों के प्रकाशन सें भी हिंदी- पुस्तकों के समान द्वी सफल्ञता प्राप्त की । उनकी किया के ज्ञेत्र संकुचित न थे। वह्द “सेवा-धम” के फेवल प्रकाशक ही नहीं, किंतु उसके सच्चे अनुयायी थे।




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