मानव की कहानी भाग 2 | Manav Ki Kahani Bhag II

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५३० मानव को वेड़ानी वदत श्रो तकर प्रमम्य था उस समय भारत और चोन की संम्यता वर त हो वही चड़ी थी । वलाइव जबे ईषवों शती में भारत में भाषा रौर उसने गान লী সিহাহ লং देसाया तब उसने कहां था कि इतना समृद्ध और दिशाल नगर यूरोप में वहीं भो नही है। ऐसी हो समझ शोर उचन्नते दशा चीन, हिद्रंघोन, हिन्देशिया में भी थी 1 प्रध्न यही उठता है कि पूर्व जहा वी सम्यता इतती पुरानी और सम्‌द्ध ঘী, অহা ই লালন के वास साहित्य, कला, दर्शन, साम्राित संगठन, स्यापार एवं उद्योग कौ याती पहिले से ही थी, खह मानव यूरोप के उन अपेकाइल झसपयु एप ब/ुत पिछले हुए लोगों से १८वीं যে হা হালাহিহযী মী বশী ঘর হম पी्ठे रह गया। इतिहासका्ों ने इसके वारणो की चर्चा वी है। पुर्द का मानव बस्तुतः ग्रपनी सरहति के मूफतम्द, उसके भार वी. भुला चुकी था भौर उसकी जगह 'उमके লাল में प्रथत्ित कई निर्मल ক্ষীর झ्ाथिक एवं सामाजिक मान्यतादों और विधारों वी शू सलाझ्रा में बंध चुता था। घामिक एवं जीवन मम्बधी सदी भान्यतायें बसे पहने तो समाज के समझ, शिक्षित रौर नेतारं में प्रचलित हो गई, भौर फिर दिसो प्रवार जन जन तक फैन गई-यह कहना कठिन है) इस प्रचलित विश्वासों भौर मान्यताओं को ही श्रपमी प्राचीन सम्मता समभवर पूर्च को मानव उमत्री पुर्णता और वडष्यन में इतना झ्रम्प-निष्वासी हो गया कि वह भानते लगा था कि ज्ञान भौर विज्ञान वा झ्नन्तिम झह्द उनके प्राचीन ग्त्थी में कहा जा चुका है। उसके লাই কুক नहीं है। उसी आदनां इतनी सकरी्ण हो चुकी थी कि वह जाने प्रतजाने यह विदवास करने लगा था कि पातों उसके देश ररः उमरी सम्यत के बाहर कहीं भौ उच्च सभ्यता एव भस्मनि नही हो सबसी, यहा तक कि श्लाज भो भारत और चीन मे ऐमे भनुप्य विद्य- मान है. जिनका यह विश्वास बना हुआ है कि भारत मे जो হু শী वेदो में लिखा हुआ मिलदा है उसके प्रतिरिबत दुदिया से ज्ञान, विज्ञास के किसी भी झेत्र में दुछ भी नई दात नहीं है । देद समझा वर अच्ययन




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