वीर तपस्वी | Vir Tapasvi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
43
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ६]
को दी है। यह सब धर्म के प्रभाव से हुआ दे, ऐसा मान, धमे की ओर इनकी
रुचि अधिक बढ़ने लगी। यथार्थ में यदि सोचा जावे तो अपने कृत पुराय-पाप
या शुभ-अशुभ कर्मों का फल है । धमं पालन की भोर तो सभी को लगना
ही चाहिये। क्योंकि यही आत्मा को उन्षति का साधन है। आओर मारतव्ष
तो इसके लिये प्रसिद्ध ही है । यहाँ के वासियों की इस ओर সম্কুতি হীনা
स्वाभाविक दी है।
इसीसे ये तपस्या करने लगे | ओर तपस्या हर चातुर्मास में विशेष रूप से
करते हैं । इन्होंने एक दिन से लेकर २३ दिन तक की तपस्या की है ।
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वैराग्य-भाव
ना गक गर गाह गृ °
प्रत्येक मनुष्य की विचार-धारा प्रतिक्षण में बदलती रहती है। जो विचार
इस समय हैं, वे कुछ समय बाद नहीं रहेंगे । लेकिन कुछ विचार ऐसे द्वोते हैं
जो कभी हटते द्वी नहीं, ये ही विचार दृढ़ विचार कहलाते हैं, इन्हीं से कायं
होता हुश्रा देखा जाता दै। संसार में भी दृढ़ विचार वालों की प्रशंसा द्वोती ই,
और चणिक विचार वालों का विश्वास उठ जाता है। यद्दी नियम धार्मिक
प्रवाह के लिये भो लागू द्ोता है। उसी के अनुसार छुब्बूभाई के विचारों में
भी परिवर्तन होना आरम्भ हो गया । उनकी श्रद्धा धर्म के प्रति पदलेसे दी
थी । वद अब ओर दद होती जाती थी। अब उनकी दृदता देखिये:---
मन्दसौर में श्री मजेनाचायं शाङ्गज्ञ, पूज्य श्री मल्षालालजीमन्सा०्की
सम्प्रदाय के मुनि श्री छोटेलालजी म० सा० का शेखे काल पधारना हुआ ।
उन्होंने छुब्बूमाई की बढ़ती हुई तपस्या तथा धार्मिक प्रश्ृत्ति को देख कर आत्म-
कल्याण करने का उपदेश रूप व्याख्यान दिया । जिसका आशय यद्द था कि
यह संसार असार है, इसमें उत्पन्त होने बाले सभी पदार्थ एक दिन अवश्य
नाश द्वोते हैं । फिर उनके लिए व्यथथ का पापल्लिवं कयो शिया जवे । संयार
में कुदुम्नीजन भी अपने स्वाथ के सगे हैं, उनके स्वार्थ में यदि जरासा भी
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