दर्शन का प्रयोजन | Darsn Ka Prayogan

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Darsn Ka Prayogan by डाक्टर भगवानदास - Dr. Bhagwan Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द दर्शन . महावीर-जिन सहावीर-जिन की जीवनी का पता जहां तक चलता है बहुत कुछ बुद्ध के चरित से मिलती है । तीस वभ॑ की उमर में उन्हां ने ख््री पुत्र युवराज का पद राज्य लद््मी छोड़ा । बारह वर्ष तपस्या करने पर कैवल्य-ज्ञान की झटद्ढोत की तौहीद की ज्योति का उदय उन के हृदय में हुआ । शुद्धि शांति शक्ति की पराकाछ्ठा के पहुँचे । तीस बष उपदेश द्वारा संसारी जीवें के उद्धरण में प्रदत्त रहे। बुद्धदेव के समकालीन थे । दोनों ही का आझाज से के डाई सार घर हुए । जैन पद्धति का भी मूल सब दुःखों से मोक्ष पाने की टू । इस संप्रदाय का एक बहुत प्रामाशिक अंथ तत्वाथाधिगम सूत्र है। इस को उमास्वामी जिन को उमास्वाती भी कहते हैं प्राय सच्रह सौ वर्ष हुए लिखा | इस का पहिला सूत्र है सम्यग्दशंनज्ञानचारित्राणि मोचमागे | मोक्ष का सब दुःखों से सब बंघनों से छुटकारा पाने का उपाय सम्थग दर्शन सम्यक ज्ञान सम्यक्‌ चरित्र है । सम्यक जैन मत का एक प्रसिद्ध श्लोक है-- - झाखवों बंघदेतु स्यात्‌ संव॒रो मोक्षकारणम्‌ । इतीयमाहंती मुष्टि झन्यदस्या प्रपंचनमू बंध का हेतु आख्बव तृष्णा उस के संबर से निरोध से मोक्ष--इस मूठी में सारा अत तंत्र जैन दशंन रक्‍खा है। अन्य सब भारी पंथ विस्तार ं ली का प्रपंचन फैज्ञावा है । वेदांत द्शन के बंघ--अविद्या--विद्या--मोक्ष गौर बौद्ध दर्शन के दुःख--दष्णा--त्याग--निवाण याग दर्शन के व्युस्थान- निरोध आादि नितरां सुतरां यही पदाथ हैं। उक्त जैन श्लॉक में जो बात इच्छा संबंधी शब्दों में कही है उसी का दूसरा पक्ष दूसरा पहलू ज्ञान संबंधी शब्दों में उसी प्रकार के संप्राहक और प्रसिद्ध वेदांव के श्लोक में । | कहा है । श्लोकार्षेन प्रवच्यामि यदुक्त॑ शास्त्रकाटिमि । ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवों ब्रह्मेव नाइपर २ ईसा मसीह इसा मसींद ने भी ऐसी ही बातें कही हैं-- कम अंट्ू मी आालें यी दैट आर वियरी ऐशड हेवी लेडन ऐशड झाइ बिल गिव यू रेट । इफ़े एनी मैन बिल कम झाफ़्टर भी लेट हिम डिनाई हिमसेल्फ़ ऐशड फालो मी। फार हूसोएवर बिल सेव हिज़ लाइफ शैल लूजु इट ऐणड




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