तपोभूमि | Tapobhumi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मन्थो का मर्म॑ ४ कीतिकेय एथिवी की परिक्रमा करने के लिए वहाँ से चले गए.। गणेश जी मे माता पिता की परिक्रमा करके कहा कि लीतिए प्रथिवी की प्रस्क्रिमा লী गड 1 शिवययर्वती ने गणेश जी की जतुस्ता देखकर उनको बहुत सरा और विज्च-रूप की कन्याआ सिद्धि थार चुदि से उनका व्रिवाद कर दिया । कार्तिकेय जी नव एक काल फ्रे पश्चात लोठ तो रुप्ड हांकर शिव जा से दूर रहने लगे 7১ - ऊपर की कथा का केवल यह अर्थ है कि जो लोग ससार भर में एक ही। आत्मा समझते हैं और यह जानते हैं, कि जे एक रूप में है वही सब বলা म व्याण्क है उनको परम पिता से घुद्धि और सिद्धि ग्राम है। जो लोग यह न सममकर सबको प्रथर-प्रथंक्‌ समझने है वे परमत्रह्न से दर रहते हैं । इस प्रकार 7ी लेख-रौली स धार्मिक न्थ भरे पडे है । पद्म पुराण मे कदा गया है करि “महादेव जी सब देशों में पर्टन करते हुए काशओीपुरी में गए. |” इसका मतलब यह हुआ कि शैव-मत ओर स्थानों में फैलता हुआ कार्ख़पुरी पहुँचा, यह नहीं कि शिव जीं स्वयं घमते हुए वहाँ पहुँचे । जहाँ लिखा गया है कि “शिवजी विराजमान हैं??उससे मतलब है,कि वर्दाँ शैव-मत फैला है, और शैव-सत के प्रवीण उपदेशक, लोगो की शका निवाग्ण ` करने को मोजद हैं| इसी प्रकार जहाँ लिखा गया है कि “विष्णु विगजते है”, वहाँ यह मतलब है क़ि-वेष्णुव मत का प्रचार है और वैष्णव आचार्य पधार रहे हैं | जद्दों-कद्दा गया दे कि शिव और विष्णु मे घोर सम्राम हुआ जैसे तेज पुर, आसाम, में ), वहाँ तात्पर्य है कि शव और वैष्णुब मतों मे भारी धर्मयुद्ध हुआ | प्राय समी जगद्द जदाँ ऐसा ध्युद्/ खिखा है वहाँ यह भी लिया है कि एक ने दूसरे के बढ़प्पन को मान लिया अर्थात्‌ आपस मे (लकर रहने का समझौता हो गया। जब कहा गया है कि “धर्म ने तप किया वह मतलव दै क्रि वमात्मा रौर वर्म प्रचारक उस जगह हुए । वशेन ह कि “याजो सक्माल्ञेद शप्मरग विज्वमोहिनी पर आसक्त हो गये थे, और उसके नाम से विश्वनगर ( वेस मगर, मुपाल राज्य ) बसाकर उसके र অহা निवास कग्ते थे । एक तिन विष्णु भगवान का विमान वहाँ জাতী से झुक गया ओर यह ज्ढा गया कि जिसने एकादशी का अत किया हो बर उसे काटो से छुडा पाएगा । वह दिन एकादशी का था। एक तेलिन जा




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