समयसार प्रवचन | Samayasar Pravachan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ 1 त এটি শীট कर तट ॑ धुत ০৩৯ পি क ४ আক ও সরতে শা = कै প্র কিল এ মা के और ५५ ~ এক = ~ 25 স্পট ক झा ^ जुन च এ কল ৮৬ নিক ८275, ५९ जब श्य পেশ « ङ. जाओ (न, कनी কল্প শুতে 22 2 = 52452. >~ ~ টি পি পো अर्थ:--यत्तीश्वर (श्री कुन्दकुच्दस्थामी ) रजःस्थानको-- भूमितलको--छोड़कर चार अंगुल ऊपर आकाझमें गमन करते थे उसके हारा में ऐसा समझता हूँ कि थे अन्तरमें तथा वाहमें रज्से ( अपनी ) अत्यंत अस्प्रष्ठता व्यक्त करते थे (--अन्तरसें थे रागादिक मलसे अस्पृष्ठ थे ऑर बाहामें धूलसे अस्पए थे )। ७५. +> १ नन नि न जह पउमर्णदिणाहो सीमंघरसामिदिव्बणाणेण । ण विधोहई तो समणा कई सुमरण पयार्णति ॥ --[ दर्शनसादर ] अर्थ :--( महाविदेह क्षत्रके वर्तमान तीथ्रकरदेव ) भरी सीमेधरस्वरामीसे प्राप्त हुप दिध्य ज्ञान द्वारा श्री पद्मतन्दिनाथ- ने (श्री कुन्दकुन्दाधायदेवने ) बोध न दिया होता तो मुनिज्ञन सच्चे मागको कैसे जानते ? ৪৮. ৫ ५९ ८५ শি हे कुन्दकुन्दादि आचार्यो | आपके वचन भी स्वरूपल- संधानमें इस पामरको परम उपकारभूत हुए हैं। उसके लिये মং জে र ५५ स अपक अत्यन्त भक पदक नमस्कारः करता ह्‌ 1 [ श्रीमद्‌ राजचन्द्र ] ७२ हा ५४ ४ श छः ८ ক 06 ५ १९६५ # (न्क कि ४ | [ ১০০ ~ ~ ~ + 5. কী আত ৬ এত আত তা $ আস ০০২ সি + ~ ८ ८ ^ अ 2 1 न 2 कल म. ५ च प क 0 थ যাহ আতিক ওসি সতত হে ঢ সপ ৯০০০৯৮০১৬০২ ৭১১২১ ৮ ভিত




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