समयसार प्रवचन | Samayasar Pravachan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
383
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अर्थ:--यत्तीश्वर (श्री कुन्दकुच्दस्थामी ) रजःस्थानको--
भूमितलको--छोड़कर चार अंगुल ऊपर आकाझमें गमन करते
थे उसके हारा में ऐसा समझता हूँ कि थे अन्तरमें तथा
वाहमें रज्से ( अपनी ) अत्यंत अस्प्रष्ठता व्यक्त करते थे
(--अन्तरसें थे रागादिक मलसे अस्पृष्ठ थे ऑर बाहामें धूलसे
अस्पए थे )।
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जह पउमर्णदिणाहो सीमंघरसामिदिव्बणाणेण ।
ण विधोहई तो समणा कई सुमरण पयार्णति ॥
--[ दर्शनसादर ]
अर्थ :--( महाविदेह क्षत्रके वर्तमान तीथ्रकरदेव ) भरी
सीमेधरस्वरामीसे प्राप्त हुप दिध्य ज्ञान द्वारा श्री पद्मतन्दिनाथ-
ने (श्री कुन्दकुन्दाधायदेवने ) बोध न दिया होता तो मुनिज्ञन
सच्चे मागको कैसे जानते ?
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हे कुन्दकुन्दादि आचार्यो | आपके वचन भी स्वरूपल-
संधानमें इस पामरको परम उपकारभूत हुए हैं। उसके लिये
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