सदाचार सदन | Sadachar Sadan
श्रेणी : शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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देवी सम्प्रदाय के नाम बह छांट छांट कर रखते हैं।
- बह तो तुम्हारे प्रेमी हैं यों थार तुम्दारी करते हैं ॥
पावेती ज्ञो--वलिद्दारों इस श्रम की |
भोजन भोजन कहने से क्या पेट कोष भर परती द ।
पानी पानी कहने से ऋत्र प्या क्रिसी छी जातो है ॥
विद्यादेवी--अच्छा भारत रत सोले सुलनींद तू कब तक सोवेगा ।
होश तुमे जब आवेगा तो शोश पकड़ कर रोवेगा॥
मैं तेरा साथ छोड़तो हूं क्यों तु मुझ से घबड़ावा है ।
कर प्रेम अविया पापिनसे दुख पाता या सुख पाता है ॥
वेदादि मन्थ भी जाते रै नहीं उदरं उन स्थानां मे।
जिस जगह न जिसका मान कोई क्यों रुके ने उन खानोमें |)
कुबेर जी--भो देश मुझे अ्पनायगा में उम्र से नाता जोड़ंगा।
लो देश मुझे ठुकरायेगा में इस से नाता वोडगा॥
अभिमानी सारत मैं तुक से अब अपना पिंड छुट्टाता हूं ।
युख श्नौर सम्पत्ति तेरी लेकर में श्रन्य देश में जाता हूं ॥
[दया दैवी छा प्रवेश |
दया--(भगवान् से) यह सच आप क्या करा रहे हैं (
वीर विहीन भारतको जो घाहेगा आन दवायेगा।
श्मषिद्या पापिन के कारण दुख क्लेश, पनेकों पायेगा॥
देवी कोपों के भ्रभाव से वह सिहर सिददर रद जायेगा ।
किसके बल्ल धीरज्ञ बांधेगा जब भी इथका अङकक्लायेगा ॥
विष्णुज्ञी--मेरे पास इसका क्या उपाय है, जैसी करती वैसी অহনা ।
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