सदाचार सदन | Sadachar Sadan

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Sadachar Sadan by पंडित रामचंद्र शर्मा - Pandit Ramchandra Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( € ) देवी सम्प्रदाय के नाम बह छांट छांट कर रखते हैं। - बह तो तुम्हारे प्रेमी हैं यों थार तुम्दारी करते हैं ॥ पावेती ज्ञो--वलिद्दारों इस श्रम की | भोजन भोजन कहने से क्या पेट कोष भर परती द । पानी पानी कहने से ऋत्र प्या क्रिसी छी जातो है ॥ विद्यादेवी--अच्छा भारत रत सोले सुलनींद तू कब तक सोवेगा । होश तुमे जब आवेगा तो शोश पकड़ कर रोवेगा॥ मैं तेरा साथ छोड़तो हूं क्‍यों तु मुझ से घबड़ावा है । कर प्रेम अविया पापिनसे दुख पाता या सुख पाता है ॥ वेदादि मन्थ भी जाते रै नहीं उदरं उन स्थानां मे। जिस जगह न जिसका मान कोई क्यों रुके ने उन खानोमें |) कुबेर जी--भो देश मुझे अ्पनायगा में उम्र से नाता जोड़ंगा। लो देश मुझे ठुकरायेगा में इस से नाता वोडगा॥ अभिमानी सारत मैं तुक से अब अपना पिंड छुट्टाता हूं । युख श्नौर सम्पत्ति तेरी लेकर में श्रन्य देश में जाता हूं ॥ [दया दैवी छा प्रवेश | दया--(भगवान्‌ से) यह सच आप क्या करा रहे हैं ( वीर विहीन भारतको जो घाहेगा आन दवायेगा। श्मषिद्या पापिन के कारण दुख क्लेश, पनेकों पायेगा॥ देवी कोपों के भ्रभाव से वह सिहर सिददर रद जायेगा । किसके बल्ल धीरज्ञ बांधेगा जब भी इथका अङकक्लायेगा ॥ विष्णुज्ञी--मेरे पास इसका क्या उपाय है, जैसी करती वैसी অহনা ।




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