धनाश्ररीनियमरत्नाकर | Dhanabhari Niyamratnakar

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Dhanabhari Niyamratnakar by बाबु जगन्नाथदास - Babu Jagannathdas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| ४ चनाच्तरौनियमरलाकर । लते हैं और उन्हों का प्रचार विशेष है। किसी | किसी अपर कवि ने भी तेंतीस वर्ण के कवित्त | बनाये हैं परन्तु बहुतही कम-- | जसवन्तसिंह का बनाया हुआ तेंतीस अच्तर का कवित्त | |. প্দিত্্ী ল্দলজাই पिकं चातक पुकार बन । मोरनि गुहार उदः जुगुन्‌ चमक चमकि । घोर घनकारे भारे धुरवा धुरारे धाम धमनि मच | | नाच टामिनौ दमकि दमकि ॥ भकनि वथार वहे लूकनि लगावै चंग हूकनि भभूकनि कौ उर | मै खमकि खमकि ! कैसे करि राखीं प्रान प्यारे | जसयन्त विना नान्हौ नन्ही वृद भरे मेघवा भ- | सकि ममकि॥ | इकातीस अच्षरवाला कवित्त सनहरन और | | बत्तीस वाला रूप घनाक्षरी कहलाता है । घ- | | नच्तरौ न्ट मं लघु गुरु का किसी विशेष क्रम | से पड़ने का नियम नहँ ह, इसी कारण से ये | | सुक्तक तथा अनियत कहे जाते हें ॥ 0 ০০০০




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