विश्व भारती पत्रिका | Vishvabharati Patrika

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Vishvabharati Patrika  by कालिदास भट्टाचार्य - Kalidas Bhattacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मदषि और शान्तिनिकेतन ३१७ फिर भी आइचयें का विषय यह है कि शान्तिनिकेतन के न्यासपत्र में विद्यालय की क्रोई संभावना तक नहीं थी। सुतरां क्षारितनिकेतन आश्रम के लिए इतना आयोजन सभी को अनावश्यक प्रतीत हुआ था। यह्टां बहुत खर्चे करके कांच का एक मन्द्र बनवाया । मन्दिर का फरश सफेद पत्थर से बनवाया गया, और चारों ओर नाना रंगों के कांच की दीवाले' और अनेक द्रवाजे बने । द्रवाजों को छगा देने से चारों भोर बिल्दुल उन्मुक्त दो जाता है। श्ान्तितिकेतन के विसार प्रान्तर के--अनन्तत्व का भाव दब न जाय इसीलिए मन्द्रि को शसा बनवाया गया ।! उसके बाद बगीचे के चारों ओर छोटे छोटे खंभे बनवाकर उनपर उन्होंने ब्रहममंत्र छिखवा दिए, और छातिमतला पर ध्यान करने के अपने स्थान पर सफेद पत्थर की बेदी बनवाई। मन्दिर में नित्य दो बार उपासना करने के लिए एक निर्दिष्ट व्यक्ति पुरोहित नियुक्त हुए। केवल मन्दिर वे देख नहीं सके--उनके निर्देशालुसार वद्द निर्मित हुआ था। किन्तु क्यों?! यह सब किसके लिये? चंधा मासिक वेतन पाजनेवाले पुरोहित द्वारा क्या धर्मापासना हो सकती है १ नहीं होती इसे वे जानते थे। देवेद्रनाथ के पाकस्ट्रीठ में रहते समय श्रीयुक्त रवि बाबू आदि त्रह्मममाज के सम्पादक हुए; तब एकदिन उन्होंने यही प्रइन उनसे पूछा था। उन्होंने कहा, अच्छा तो तुम च्छा आदमी छाकर उपासना कराओ। किन्तु ऐसा आदमी मिलेगा कहाँ ? देवेन्द्रनाथ सोचते थे, जब तक ठीक आदमी न मिले तब तक एक सुरधरिया तो रखना ह्ी चाहिए--कोई व्यवस्था तो तेयार रखनी ही होगी। शान्तिनिकेतन में कोई नहों है, तो भो ब्ह्योपासना का सुर वहाँ रोज बजना हां चाहिए---इसी लिए इतनी व्यवस्था है । अवद्य ही समय समय पर बह्म समाज के किसी किसी प्रचारक ने भाकर आश्रम भें निवास किया है। उस समय भाश्रम के अध्यक्ष श्रीयुक्त अघोरनाथ चट्टोपाध्याय की चेष्ठा ओर यत्न से आश्रम के बाहर का सौव पूरा ঘা লন समाज के साधकों ने आकर यहाँ उनके आतिथ्य में परमानन्द से दिन बिताए हैं। इसीलिए साधारण छोयों के मन में यह विश्वास है कि श्रीयुक्त रवि बाबू का विद्यालय हो जाने के कारण देवेन्द्रनाथ का शान्तिनिकेतन आश्रम-स्थापना का उद्देश्य नष्ट हो गया। जहाँ নিজললা জীব शान्ति थी, वहाँ तीन सौ व्यक्तियों की हाट लग गई है। जो यह बात सोचते हँ उनको यह जानना चाहिए कि विद्यालय के प्रतिष्ठाता भी स्वय॑ देवेन्द्रनाथ हैं। उन्होंने संसारविमुख साधकों के लिए शान्तिनिकेतन के इस निम्नत नीड़ की रचना नहीं की । उन्होंने मन ही मन जनता की इस हाट की ही कामना की थी। यहाँ सब विचित्र साधनाओं का स्थान होगा और सब साधनाओं के ऊपर रहेगी अहम की साधना, को भूमा साधना। यहाँ ज्ञानी आएंगे, वेशानिक आएंगे, शित्पी आएंगे, कर्मी आएंगे--- २




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