हासिल रहा तीन | Hasil Raha Teen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कष कु मृष्टिधर ध्यान से दैवता है । सभी को सांत्वना देता रहता है। कहता
दै, “दाहा ! सचमुच आप्र लोगे को वड़ो हौ तकठोक् होती है“. _
हरिपद चक्षवर्ती तीसरी मंजिल का किरायेदार है। प्राकिस्तात बनने के
बहुत पहले से ही इस मकान में है। छयभग तीन पूरणो से इस मकान में रहता
थाया है । छेकित पाकिस्तान वन जाने के बाद से ही राधा बुआ चर्गरह नै
उसझे साथ एक विशेषण लगा दिया है । दोप में दोष इतना ही है कि वे छोग़
वारिशाल के आदिन्याशिन्दे हैं ।
सृष्टिघर कहता था, “ठहरिए, अबकी माछिक आ जायें तो उन्हें एक बार
यहां हे आऊंगा । आप छोगों में से जिनकी जो कुछ कहना है, कहिएगा 17
हरियद चत्रवर्ती कहता था, “तुम्हारे मालिक यहां क्यों बायेंगे, सूप्टिघर ?
ये हरे बढ़े आदमी--करोडपति ! वे भछा गरीबों का दुख क्यो समझेंगे 2?
“नही-नहीं; कया कह रहे हैं आप ! मेरे मालिक बड़े ही सीधे-सादे हैं ।
दया या अवतार समझिए। कितना ही दान-वान करते रहते हैं।”
हरिपद घक्वर्ती कहता या, “सो दया के अवतार रहे! हम छोगों का
द-प कोई नहीं समझेगा, भृष्टिधर ! हमें सिर्फ तुम्हीं पर भरोसा है ।”
मृष्टिघर कहता था, “नद्ीं-नही। अवक्री देखिएगा, मालिक को जवरन यहां
छे आऊंगा ।
एमी तरह मृष्टिघर हर वार सभी को भरोत्ता दिया करता था। परंतु
प्राहिए कभी नहीं आदा। आने का उसे वक्त नहीं मिला 1 ंतत: पहली मंजिल
$ भयदुाक ने एक बार खुद कारीगर बुलाकर रसोईधर की चार की मरम्मत
करा हे ही थी, आंगन में जमी काई ब्ली विय पाउडर से साफ करा छी थी और ऊपर
मैं गिराये हुए के के पत्तों को मेहतर बुछझकर रायदान में डलवा दिया था ।
अन्त, होमरी मंजिल के हरिपद चक्रवर्ती ने भी राज-मिस्त्री की खुघामद-बरयमद
फर हीदार मे बालू का पठस्तर करा लिया था, नल के कारीगर को बुलाकर
न टीड़ करा हिया था और मेहतर बुलाकर नाटी के कूटडे-कचरे की वटदान
में फपपाने का इस्तेंजाम रिया था।
“मां, मृष्टिधर को बुछा लाई हूं ।”
“भगी मो पृष्टियर, तुम्हारे कारनामे भी झजीद हैं ! ”
देह मान राह्ते वर सिर ऊंचा किये खड़ा है । मकान की बाहरी दीवार
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