नटनागर - विनोद | Natanagar - Vinod

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Natanagar - Vinod by कृष्णविहारी मिश्र - Krishnavihari Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका १--कवि के प्रवजों का वृत्तान्त कान्यकुब्ज देश के विख्यात नरेश भानुकुल-कमल-दिवाकर महाराजा जयचन्द को कोन नहीं जानता है। अपने समय में इन राठौर-बंशावतंस महाराजा जयचन्द का पूण आतंक था । उत्तरी भारत मं इनकी कन्नौज राजधानी विश्व-विख्यात थी। समय की गति के अनुसार राठोरों ने कन्नौज देश को छोड़ दिया और राजस्थान देश में अपनी विजय-वैजयंती फहराई । महाराजा जयचंद के प्रपीत्र का नाम अस्थान जी था। मारवाड़ में इन्होंने ही पहले-पहल राठोर-राज्य की অভ जमाई । अस्थान जी की दसवीं पदी मे प्रसिद्ध जाधपुर राजधानी को बसानेवाले राव- जाधा जी हुण। रावजाधा जी की सातवीं पीढ़ी में मोटाराजा नाम से प्रसिद्ध उदयसिंह जी हुए । मोटाराजा जी के सत्रह पुत्र थे, इनके नव पुत्र का नाम दलपतिसिंह जी था। बडदेंडा, खेरवा ओर पिसागुझ् यह तीन परगने इनके अधिकार में थे। दलपति- सिंह जी के पाँच पुत्र थे जिनमे सवस बड़ मदेशदास जी प्रबल पराकमी ओर सच्चे शूरवीर भे । बादशाह शाहजहाँ के थे विशेष रूप से क्रपापात्र थे। पिता के समान ही महेशदास जी के भी सोभाग्य से पाँच पुत्र-रत्न थे। इन सबमें ज्येष्ठ पुत्र रतनसिंह जी वास्तव में कुल-रतन्न थे। ये बड़े ही साहसी, निर्भीक ओर पराक्रमी योद्धा थे। दिल्‍ली में एक बार इन्होंने एक मदोन्मत्त शाही हाथी को अपने प्रचण्ड प्रहार से भयभीत करके भागने के लिए विवश किया था । संयोग से उस समय बादशाह महल




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