महाकवि ब्रह्म रायमल्ल एवं भट्टारक त्रिभुवनकिर्ति | Mahakavi Brahm Rayamall Evm Bhattarak Tribhuvan Kirti

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Book Image : महाकवि ब्रह्म रायमल्ल एवं भट्टारक त्रिभुवनकिर्ति  - Mahakavi Brahm Rayamall Evm Bhattarak Tribhuvan Kirti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( हर ) उसका अकसनात स्वर्वासं हो भवा भौर दे सके एक भी प्रकाशन को नहीं देखें सके लेकिन मुंझे यह लिखते हुये प्रसक्षता है उन्हीं के पुपुत्र साहु अलोक कुमार जी जैन ने हमारे विशिष्ट भग्र पर प्रकादमी का संरक्षक बतने की स्वीकृति ये दी है साथ हो में पषना पूर्ण सहयोग देते का সামার भी दिया है। इसी प्रकार जब मैंने श्रीमात सेठ गुलावचन्द जी साहब गंगवाल से उपाध्यक्ष बनने को स्वीकृति चाही तो उन्होंने भी तरकाल ही भपनौ स्वौकति भिजवादी । इसी तरह श्रीमान्‌ लाका भ्रजीतध्रसाद जी जैन ठेकेदार देहली का नाम उल्लेखनीय है जिन्होंने सर्व प्रथम विशिष्ट सदस्यता के लिये प्रौर फिर विशेष भ्राग्रह करने पर भरकादमी के उपाध्यक्ष के लिये भपनी स्वीकृतिं भिजवादी । प्रकादमी की स्थापना के सम्बन्ध में जब मैने श्रीमान्‌ सेठ कन्हैयाजाल जी सा० जेन पहाडिया,मद्रास वालों से बात चलायी श्ौर उनसे उसकी भ्रध्यक्षता स्वीकार करने के लिये भ्राग्रह किया तो उन्होंने श्रपनी प्रसन्नता प्रकट करते हुये दूसरे ही दिन बातचीत करने के लिये कहा । मै एवं वेश्च प्रमुदयाल जी कासलीवाल भिषगाचार्य दोनों ही दूसरे दिन उनके पास पहुंचे तो उन्होंने प्रकादमी के कार्य को श्रागरे बढ़ाने के लिये कहा भौर उसका प्रध्यक्ष बतता भी स्वीकार कर लिया। इसी तरह श्रीमान्‌ सेठ कमलचन्द जी कासलीवाल एवं श्री कन्हैयालाल जी ख्रेठी ने भी उपाध्यक्ष बनने की जो स्वीकृति दी है उसके लिये हम उनके भ्राभारी हैं। धप्रकादमी के सदस्य बनाने के कायं में मुभे जिनका विशेष सहयोग मिला उनमें श्रीमती सुदर्शना देवी जी छाबडा, वेद्यं प्रभृदयाल जी भिषगाचायं, ध्रीभती कोकिला जी सेठी, १० भमृतलाल जी दर्शनाचार्य वाराणसी एवं श्री भुलाबचन्द जी गंगवाल, श्री महेशचन्द जी जैन, डॉ० चान्दमल जैन एवं डॉ० कमलचन्द सोगाणी उदयपुर के माम विशेषतः उस्लेखनीय है । मैं इन सभो महानुभावों का हृदय से भ्राभारी हू जिन्होंने संचालन समिति भथवा विशिष्ट सदस्यता के सूप मे भरपनी स्वीकृति भेजी है । मुभे पूर्ण विश्वास है कि समाज के साहित्य प्रेमी महानुभाव समूचे हिन्दी जेन साहित्य के प्रकाशन में भागीदार बनकर सहयोग देने का कष्ट करेगे । साहित्य प्रकाशन के इस कायं में कितने ही विद्वानों ने सम्पादक के रूप में भ्रौर कितने ही विद्वानों ने लेखक के रूप मे भ्रपता सहयोग देने का भ्राश्वास्षन दिया है । श्री महावीर प्रकादमी की इस योजना में हम ग्रधिक से अधिक विद्वानों का सहयोग लेना चाहेंगे ' भ्रभी तक देश एवं समाज के कम से कम ३० विद्वानों की बीकृति प्राप्त हो चुकी है । ऐसे बिद्वातों मे डा० सत्येन्द्र जी जयपुर, डा० रामचन्द्र




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