समयसार चयनिका | Samayasar Chayanika

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : समयसार चयनिका  - Samayasar Chayanika

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about कमलचन्द सोगाणी- Kamalchand Sogani

Add Infomation AboutKamalchand Sogani

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
है, किन्तु समयसार का शिक्षण है कि ये भाश्वव (कर्म) यद्यपि झ्ात्मा (जीव) से जुड़े हुए हैं, फिर भी ये भ्रलग होने योग्य हीते हैं ये प्रस्थिर हैं तया स्थायो महारे-रहित है (34) । साथ ही ये कर्म जो मानसिक तनाव उत्पन्न करते हैं स्वय दुख रूप होते हैं प्रोर दुख को उत्पत्ति का कारण बनते हैं तथा दु ख-परिणामवाले इहते है (32,34) । ज्ञान का उदय होने पर व्यक्ति इनसे दूर होने ঈ लिए तत्पर होता हो है (31,32)॥ भज्ञान की स्थिति मे व्यक्ति इन मानसिक तनाव उत्पन्न करनेवाले कर्मों से एकीकरण किया हुभा जीता है भौर मानसिक तनावो की परम्परा को जन्म देता रहता है श्लौर उसे आत्मा भ्रौर कर्म (मानसिक तनाव) मे भेद नजर नही भ्राता है, जिसके फलस्वरूप वह क्रोधादि कषायो से एकमेक रटकःर दु श्री हीता रहता है (29,30) । जिस क्षण व्यक्ति को यह ज्ञात हो जाता है कि उसकी चेतना अपने मूलरूप में शुद्ध (स्वतन्य /तनाब-मूक्त) दै, गपायरहित है, ज्ञान-दर्शन से श्रोतप्रोत है, उसी क्षण से मानसिक तनाव विदा होने लगते हैं (33) | यहाँ प्रश्न है कि प्रात्मा से कर्मों (मानसिक तनावो) के सयोग का क्‍या कारण है ? यह बात सर्वविदित हैकि व्यक्ति वस्तुश्नो और मनुष्यों प्राणियों के मध्य रहता है। यदि हम जाँच कर तो ज्ञात होगा कि प्रत्येक मानसिक तनाव के मूल में कोई न कोई वस्तु या मनुष्य/प्राणी विद्यमान होता है। यदि क्रोध व्यक्ति के प्रति होता है तो लोभ वस्तु के प्रति होता है। इससे यह निष्कर्ष निकालना कि मनुष्यो/प्रासियों भौर वस्तुझो से कर्म-बन्धन होता है, अनुचित है । समयसार का कहना है कि निस्सन्देह्‌ वस्तु श्रौर मनुष्य प्राणी को श्राश्रय करके कपाए उत्पन्न होती हैं, फिर भी वस्तु श्रादि से कर्म-बन्धन (मानसिक तनाव) नही होता है। अयनिका [ |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now