सचित्र मुख वस्त्रिका निर्णय | Sachitra Mukh Vastrika Nirnay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 मेरे विचारं > आज कल लोगों की अभिरुचि समाज सुधार की ओर प्रवलता से बढ़ी हुई है। ओर पुस्तक भी सामाजिक विपय की ही विशप लिखी जा रही देः परन्तु समाज सुधार का भारभ कहाँ से होता हे इसको बहुत थाड़े लोग जानते हैं। “और इसीलिए उन्हें सफलता भी नहीं मिलती है । ससर मं वेद्यां की कमी नदो दै परन्तु श्रच्छा निदान करने चाल चिकित्सक बहुत थोड़े हैं। दवा देदेना जितना सामान्य ओर अदना काम हैं उतना राग की पर्सक्षा करना नहीं। ओर शेग की परीक्षा के बिना पधी सेवन कराना रोग को घटाना नदी, प्रत्युत वदढाना दें । आज कल क अधिकांश वैयोखी जेसी दशा दे ठीक चैसी दी दशा दमारे समाजसखुधारफो की भी हो रही है । তল্হ भी उन वैया की तरद यद नदी. मालूम है कि, वे किस मर्ज की दवा कर रहे हे । चन्धुओं ! में बतलाता हूँ कि, समाज छुधार का समारभ कहां से होना चाहिए । समाज सुधार का आरंभ घार्मिक जगत्‌ स किया जावे | धार्मिक उन्नति किए विना सामाजिक उम्नति हो ही नहीं सकती। धार्मिक विचारों को एक ओर रख कर सामाजिक उन्नति की आशा करना दुराशा मात्र है। घार्मिक जीवन के विचार सामाजिक जीवन कृपण जीवन है।




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