देवदासी | Devdasi
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.77 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दचदासी जलन सजग नमन रा दा वन न सपपपजजपा था न टूल नर पपपजपपपणन बे नदी है वह कलाश्योम पारड्त होकर पुरुषासे पुष्फल केलिएं विलें से केरनें वाली गणिका नहीं है । वदद उत्तग करनचुफी हे श्रपना स्त्रीत्व श्रपना मातृत्व जन्म कुमारी रहनेकेलिए । वह नहीं लौट सकती । वह देवता की सम्पत्ति है। सिन्धुनाद तुम कर्च्य-अ्रक्त्यका भेद नहीं समक पारहे हो । तभी तुम कबिताका प्रथम चरण प्रेम भूलगये हो । जाश्रों लौट जात्यरों देवदासी तुम सबसे अ्रस्पृश्य आकाश - मन्दाकिनीका कमल है । उसे तुम नहीं पासकते । सिन्घुनाद श्रात्त - से वैठगये । उनसे कुछभी नही कहागया । उन्हे चारो श्र अंधेरा ही श्रेंचेरा छाता हुआ दिखनेलगा । उनके सामने सूर्य्य- मखणिका झातुर सपरूप बारबार घूमगया जो उनकी प्रतीक्षा करती होगी जिसे नही माल्लूम कि रुक्मिणी उसीकी बहिन है । जिस पिताको कीत्तिसे ताज पल्न साम्राज्यमे स्थित सरस्वतीका श्रश्चल श्वेतसे भी अधिक उज्ज्वल होउठा था उसीका पाप बह कैसे सुन सकेगी केसे सह सकेगी वद्द यह घोर अन्घधकारकी गाथा ? वह कुछभी नही सोचसके। एक दीर्घ निश्वास छोड़कर वह मन्दिर से बाहर चलदिये श्रौर बाहर खडे स्वर्णुर यपर जाबेठे। सारथिने रथ हॉक- दिया । वृद्ध सिन्घुनादकी श्रॉखोम श्रॉसू भरश्राये । उनके हृदयमे श्रॉधी चलरदी थी । रात्रिके घनघोर अ्रन्घकारम एक छाया-सी चलनेलगी । दूसरी श्रोर से दूसरी छायाका झद्धचालन हुआ । एकने दूसरेके पास श्राकर कहा-- कौन ? रड्मद्र तुम आआगये ? हाँ देवी रज्ञभद्रने घीरेस कहा क्या तुम तत्पर हो १ रुक्मिणीने कुछ नहीं कद्दा । रड्मभद्र बोला-- देवि यहाँ तुम्हारा मान तब दोसकता हैं जब तुम अर्ष्यके फूलके समान श्रपनी गन्घ स्वय नहीं पटिचान पाश्योगी | तुम्हारी मनुष्यताके हननपर तुम्हारा यह स्व है। किन्दु श्र
User Reviews
No Reviews | Add Yours...