देवदासी | Devdasi

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Devdasi by रागेय राघव - Ragey Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दचदासी जलन सजग नमन रा दा वन न सपपपजजपा था न टूल नर पपपजपपपणन बे नदी है वह कलाश्योम पारड्त होकर पुरुषासे पुष्फल केलिएं विलें से केरनें वाली गणिका नहीं है । वदद उत्तग करनचुफी हे श्रपना स्त्रीत्व श्रपना मातृत्व जन्म कुमारी रहनेकेलिए । वह नहीं लौट सकती । वह देवता की सम्पत्ति है। सिन्धुनाद तुम कर्च्य-अ्रक्त्यका भेद नहीं समक पारहे हो । तभी तुम कबिताका प्रथम चरण प्रेम भूलगये हो । जाश्रों लौट जात्यरों देवदासी तुम सबसे अ्रस्पृश्य आकाश - मन्दाकिनीका कमल है । उसे तुम नहीं पासकते । सिन्घुनाद श्रात्त - से वैठगये । उनसे कुछभी नही कहागया । उन्हे चारो श्र अंधेरा ही श्रेंचेरा छाता हुआ दिखनेलगा । उनके सामने सूर्य्य- मखणिका झातुर सपरूप बारबार घूमगया जो उनकी प्रतीक्षा करती होगी जिसे नही माल्लूम कि रुक्मिणी उसीकी बहिन है । जिस पिताको कीत्तिसे ताज पल्न साम्राज्यमे स्थित सरस्वतीका श्रश्चल श्वेतसे भी अधिक उज्ज्वल होउठा था उसीका पाप बह कैसे सुन सकेगी केसे सह सकेगी वद्द यह घोर अन्घधकारकी गाथा ? वह कुछभी नही सोचसके। एक दीर्घ निश्वास छोड़कर वह मन्दिर से बाहर चलदिये श्रौर बाहर खडे स्वर्णुर यपर जाबेठे। सारथिने रथ हॉक- दिया । वृद्ध सिन्घुनादकी श्रॉखोम श्रॉसू भरश्राये । उनके हृदयमे श्रॉधी चलरदी थी । रात्रिके घनघोर अ्रन्घकारम एक छाया-सी चलनेलगी । दूसरी श्रोर से दूसरी छायाका झद्धचालन हुआ । एकने दूसरेके पास श्राकर कहा-- कौन ? रड्मद्र तुम आआगये ? हाँ देवी रज्ञभद्रने घीरेस कहा क्या तुम तत्पर हो १ रुक्मिणीने कुछ नहीं कद्दा । रड्मभद्र बोला-- देवि यहाँ तुम्हारा मान तब दोसकता हैं जब तुम अर्ष्यके फूलके समान श्रपनी गन्घ स्वय नहीं पटिचान पाश्योगी | तुम्हारी मनुष्यताके हननपर तुम्हारा यह स्व है। किन्दु श्र




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