अध्ययन और आलोचन | Adyayan Or Alochan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
348
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[१७]
है तो कलाकृति के सौन्दर्य में कोई सन्देह नहीं। हम कलाकृति से बाहर
जाकर उसका श्रध्ययन नहीं करते । इस वर्ग के अनुसार कलाकृति के साथ
उसके भीतर ही द् ठने होगे, सामथिक उपयोगिता के बाधने से कलात्मक
सौन्दयं का ह्वास होगा । और भी श्रागे बढ़कर यह श्रालोचक वं कहता है
कि कला स्वयं साध्य है ।! उससे धमं, संस्कृति, नैतिक रिक्षा, मनोवेगो के
सार्जन इत्यादि की श्राशा एकदम व्यथं है । उसका अस्तित्व अपने पर ही
श्रवलम्बित है । उच्नीसवीं शदी के आरस्भ में स्वच्छन्दतावादी श्रालोचना ने
साहित्य की बन्धन सुवित की भ्रावाज 'उठाई थी श्रौर उसकी स्वतन्त्र सक्ता
कानारा लगाया था। भ्राज भी क्रौचे श्रौर उनके शिष्य इसी परम्परा को
श्रागे बढ़ा रहै है । यद्यपि भ्राज उनका पक्ष सौन्दयं-लास्र श्रौर तकं-वितकं
पर आश्चित है, भावुकता पर नहीं ।
एक तीसरा वर्ग भी है, जो कला को स्वतन्त्र सत्ता मानते हुए और
उसे धर्म-दर्श न-राजनीति-निरपेक्ष बतलाते हुए भी किसी ऐसे श्रन्तः सूत्र की
कल्पना करता है जिससे कलाकृति इनसे जुडी रहती है, यद्यपि वह यह बतलाने
में भ्रसमर्थ है कि यह अन्त सत्र है क्या ? इलियट श्रौर रिचडंस बहुत कुछ
इसी मध्यवर्ती मनोवृति को लेकर चलते हँ ।! रिचडंस का कहना है कि हमारी
काव्यानृभूति कदाचित् किसी विशिष्ट रीति से हमारी सस्कृतिगत, घमंनिष्ठ
और सामाजिक भावनाओं को मृदुल बनाती है और इस प्रकार सद्प्रयोजनां
की सहायक बनती है। परन्तु यह् विशिष्ट रीति क्या है, इसका उद्घाटन
ये मध्यवर्ती भ्रालोचक नहीं करते ,
वास्तव में प्ररन की नीवि गहरी है । प्रयोजन की बात उठाने से पहले
हमें साहित्य के रूप के सन््बन्ध में निश्चित होना होगा । आखिर साहित्य है
क्या? उसके निर्माण के तत्त्व क्या हैं और किस प्रकार उनका
संयोजन होता है ? इन निर्माण-तत्त्वों में कलाकार को वैयक्तिक अनुभूति
और सामाजिक निष्ठा के युगल तत्वों का समन्वय किस प्रकार होगा ? यहं
बात नहीं कि हमारे सामने ये प्रश्न पहली बार श्राए है, परन्तु राज भी
ये प्रदन हमारे लिए महत्वपुणं है । साहित्य के प्रयोजन से ये प्रश्न अनिवायं
रूप से सम्बन्धित हैं ।
कुछ लोगो का कहना है कि साहित्य हमारी संवेदनाओ और श्रावेगों
की भ्रभिव्यक्ति है। कोई इनकी अनुभूति को ही काव्य सान लेता है, कोई
कलाकार द्वारा श्रनुभृत भाव की सार्थकता उसी समय समभता हैँ, जब वह
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