अशोक मौलिक नाटक | Ashok Moulik Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दृश्य ] प्रथम अंक १७
पूछता हूँ कि तुमने अपने पिठृ-तुल्य सम्राट की अवज्ञा क्यों
की ९ तुमने एक क्षण के लिए भी यह बात अपने मस्तिष्क
में क्यों आने दी कि सगध साम्राज्य में रह कर तुम्हारो
स्वाधीनता सुरक्षित नहीं रह सकती ९ भाइयो, तत्तशित्ञा-नगर
के धूल की एक-एक कण मेरे लिये तोर्थ के समान पवित्र
है।यह नार भेरे दादा, महान, चन्द्रगुप्त मोये को शिक्षा-
भूमि है । इसी नगर में रह कर उन्होंने अपने साम्राज्य की,
अपने महान व्यक्तित्व के विकास की नींब डाली थी । क्या
तुम उस महापुरुष को भूल गए ? बोलो, बोलो, क्या तुम महान्
चन्द्रगुप्त को भूल गए ९
सभी नागरिक-( चिल्ला कर ) জলা, चन्द्रगुप्त का यश
अमर रहे !
अशोक--एक बार मिन्नकर बाज --सगाष-साप्राज्य का यश
अमर रहे !
सब नायरिक- सगध-साम्राज्य का यश अमर रहे !
अशोक--शावाश, भाइयो ! तुमने आज इस गरिसा-
शालिनी नगरी का सम्मान वचा लिया। एक बार और मिलकर
यही नाद दिशा-दिशा में गजा दो। संसार समझ जाय कि
मगध-साम्राज्य का मत्तिष्क आज भी उसी तरह स्वस्थ और
सुरक्षित है।
सव लोग--मगध-साम्राज्य अमर रहे !
राजकुमार अशोक चिरंजीव हों !
রি नेता--राजकुमार, आप चण्डमिरी का न्याय-विचार कीजिए ।
में उस पर अभियोग उपस्थित करता हूं !
अशोक--अभियोग उपस्थित करने का स्थान यह्
नहीं है।
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