अशोक मौलिक नाटक | Ashok Moulik Natak

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Ashok Moulik Natak by चन्द्रगुप्त विध्यालंकर - Chandragupt Vidhyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दृश्य ] प्रथम अंक १७ पूछता हूँ कि तुमने अपने पिठृ-तुल्य सम्राट की अवज्ञा क्‍यों की ९ तुमने एक क्षण के लिए भी यह बात अपने मस्तिष्क में क्‍यों आने दी कि सगध साम्राज्य में रह कर तुम्हारो स्वाधीनता सुरक्षित नहीं रह सकती ९ भाइयो, तत्तशित्ञा-नगर के धूल की एक-एक कण मेरे लिये तोर्थ के समान पवित्र है।यह नार भेरे दादा, महान, चन्द्रगुप्त मोये को शिक्षा- भूमि है । इसी नगर में रह कर उन्होंने अपने साम्राज्य की, अपने महान व्यक्तित्व के विकास की नींब डाली थी । क्‍या तुम उस महापुरुष को भूल गए ? बोलो, बोलो, क्या तुम महान्‌ चन्द्रगुप्त को भूल गए ९ सभी नागरिक-( चिल्ला कर ) জলা, चन्द्रगुप्त का यश अमर रहे ! अशोक--एक बार मिन्नकर बाज --सगाष-साप्राज्य का यश अमर रहे ! सब नायरिक- सगध-साम्राज्य का यश अमर रहे ! अशोक--शावाश, भाइयो ! तुमने आज इस गरिसा- शालिनी नगरी का सम्मान वचा लिया। एक बार और मिलकर यही नाद दिशा-दिशा में गजा दो। संसार समझ जाय कि मगध-साम्राज्य का मत्तिष्क आज भी उसी तरह स्वस्थ और सुरक्षित है। सव लोग--मगध-साम्राज्य अमर रहे ! राजकुमार अशोक चिरंजीव हों ! রি नेता--राजकुमार, आप चण्डमिरी का न्याय-विचार कीजिए । में उस पर अभियोग उपस्थित करता हूं ! अशोक--अभियोग उपस्थित करने का स्थान यह्‌ नहीं है।




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