प्रकाश की ओर | Prakash Ki Aur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकाश की ओर ६ जगद्द्धारको ते, धर्स-सःयापको ते प्रकाश की मशाल जला थी । लेकिन, ऐसा हुआ कि आगे चल कर वह प्रकाश की सशाल बुक गई। इसके लिए भारतवर्ष के और जगत्‌ के बहुत से सन्तो ने एक रूपक रक्वा है हमारे सामने । पुराने समय से यात्रा के समय ओर वरात की यात्रा के समय भी मिकलते थे या आज भी कही-कही निकलते है, तो आगे-आगे सशाल लेकर चलते हैं और पीछे-पीछे वे सेंकडों यात्री हो या वराती हो, चलते रहते हैं । होता क्या है ? वह्‌ मशाल जो जलती हुई ले जा रहे है, तो ज्यो-ज्यों बह बुभने को आती है, त्यों-त्यो उसमे ऊपर से तेल डालते रहते हैं और फिर वह मशाल वैसे ही जगमगात्ती जाती है। तेल समाप्त होने को होता है, तो फिर तेल डालते हैं और फिर प्रकाश जगमगाता रहता है । इस प्रकार वह वरात की यात्रा चलती रहती हैं. उस प्रकाश के पीछे-पीछे । लेकिन, जव तेल ससाप्त हो जाता है ओर नया तेल डाला नही जाता है ओर जो कुछ भी पुराना तल था, वह जल-जलाकर समाप्त हो जाता हे, तो हाथ में केबल सशाल का डडा रह जाता है, प्रकाशा बुभ जाता है, अन्धकार हो जाता हैं। वह प्रकाश आर वह सशाल रहती नटी ह्‌ । लकिन, दुमाग्य से वह मश्चाल शाल जलाने वाला अव भी इतना अन्नान से है कि उसको मशाल सममे हए है । पीछे आने वालेयात्री ठोकर खा रहे है, अन्यकार में भटक रहे हैं, खुद वह सशाल लेकर चलने वाला भी ठाकर खाता है, पर उसका हाथ उऊपर-का-ऊपर है ओर वह कह रहा है कि मशाल जल रही है. चले आओ ।




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