वैदेही वनवास | Vaidehi Vanvas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११ )
वराय पाक्रिये रुफजे बे बरोज आरन्दर । : মা
कि मुगग माहीओ बाशन्द खुफता उ बेदार ॥
एक सुन्दर शब्द को बेठाने की खोज मेँ कवि उस रात को
जागकर दिन में परिणत कर देता हे, जिसमें पक्षी से मछली
तक बेख़बर पड़े सोते रहते हैं! ^
इस कथन में .बड़ी मार्मिकता है। उपयुक्त ओर सुन्दर शब्द
कविता के भावों की व्यंजना के लिये बहुत आवश्यक होते हैं।
एक उपयुक्तं शब्द् कविता को सजीव कर देता है ओर अनुपयुक्त
ब्द मयंक का कंक बन जाता है। शब्द का कविता में
वास्तविक रूप में आना ही उत्तम समझा जाता है। उसका
तोड़ना-मरोडना ठीक नहीं माना जाता ! यह् दोष कहा गया.
है, किन्तु देखा जाता है कि इस दोष से बड़ बड़े कवि भी नहीं
बच पाते । इसीलिये यह कहा जाता है, “निरंकुशा: कवयः, कौन
. कवि निरंकुश कहलाना चाहेगा, परन्तु कवि-कम्म की दुरूहता ही
. उसको ऐसा कहलाने के लिये वाध्य करती है। आजकल हिन्दी-
संसार में निरंकुशता का राज्य है। ब्रज-भाषा की कविता में.
. शब्द-विन्यास की स्वच्छन्दता देखकर खड़ी बोली के सत्कवियों
ने इस विषय में बड़ी सतकता ग्रहण की थी, किन्तु आजकल
उसका प्रायः अभाव देखा जाता है । इसका कारण कवि-कम्म
की दुरूहता अवद्य है । किन्तु कठिन अवसरों ओर जटिः
स्थल पर दी तो सावधानता ओर काय्य-दक्षता की আন্হযন্কলা;
होती है। हीरा जी तोड़. परिश्रम करके ही खनि से निकाला:
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