द्रव्यसंग्रह | Draway Sangarah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.74 MB
कुल पष्ठ :
72
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दन्यसंत्रहः सान्वयाथ: । थ
ज्ञानावरणादि व झारीरादि कर्मोका ( कत्ता-कत्ती ) कत्तो है.
और ( णिच्नयदो-निश्वचयतः ) अणुद्ध निश्चयनयसे ( चेद्णक-
म्माण--चेतनकमणाम् ) रागादिक चेतन भावोंका कर्ता है. परन्तु
( सुद्धणया--झुद्धबयात् ) झुद्ध निश्चय नयसे केवल मात्र ( सुद्ध-
भावाएं--झुद्धमावानाम् ) शुद्ध चैतन्य भावोंका [ शुद्धज्ञानदरे-
नका ] ही कत्ती है ॥ ८ ॥
८ मराठी: --हा आत्मा, व्यवहारनयाच्या अपेक्षेन ज्ञा-
नावरण व झारीर वंगरे कमाचा कत्ता आहे. अशुद्ध निश्च-
यनयानें राग, द्वष वंगेरे जे अशुद्ध चेतन भाव; त्यांचा कती
आदे. आणि शुद्ध नयानें शुद्ध भावांचा ह्णजे चेतन्य
स्वरूपाचाच कर्ता आहे.
भोक्ता अधिकारका वर्णन.
ववहारा सुहदुक्खं पुर्गलकस्मफलं पभुजेदि ।
आदा णिन्नपणयदों चेदण भावं रु आदस्स ॥ ९ ॥
व्यवहदारान् सुखदुखं पुह्ठछकमेफ्॑ श्रभुद्ध ।
आत्मा निश्वयनयत: चेतनभावं खलु आत्मन: ॥ ९ ॥)
अन्वयार्थ-( आदा--आत्मा ) जीव ( वचहारा--व्यवहारात् )
व्यवहारनयसे ( पुग्गठकम्मफर्ड--पुद्वलकर्मफलम् ) . पोट्रलिक
कर्मोका फल ( सुहदुक्ख-सुखदुःखम् ) सुख अथवा दुःख
( पभुंजदि-प्रमुझे ) भोगता है. आर ( णिच्चयणयदो-नि-
श्वयनयत: ) डुद्धनिश्वचयनयकी अपेक्षा ( खु-्खल़ ). नियमसे
( आदस्स--आत्मन: ) अपने ( चेदणभावंस-चेतनभाव॑ ) शुद्ध
दशनज्ञानोपयोगको भोगता है ॥ ९ ॥
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