उत्तराध्ययन सूत्र | Uttaradhyayan Sutra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उत्तरा न _ : एक जनुचिन्तन -विजयमूनि, शास्त्री आज समय मा गया है कि हम एकता की भावना मे एकत्रित हो। ऐसी एकता को यह समृद्धि समेटती है, जिसमे दूसरे घामिक विद्वासों को घामिक यथार्थंताएँ नष्ट न हो, वल्कि एक सत्य की मृल्यवान्‌ अभिव्यक्ति के सप में सजोयी जाएँ । हम उन ययार्थ ओर स्वत स्फूर्त प्रवृत्तियो को समझते है, जिन्होने विभिन्न घामिक विध्वासो को स्प दिया । हम मानचीय प्रेम के उस स्प, करुणा गौर सहानुभूति प्रर जोर देते है, जो घामिक आस्थाओ की कृतियो से भरी पडी हैं। घामिक आयाम के अतिरिक्त भनुष्य के लिए कोई भविष्य नही है । घर की तुलनात्मक जानकारी रखने वाला कोई मी व्यक्ति जपने सम्प्रदाय के सिद्धान्त मे अनन्य मास्या नही रल । हम जिसे ससार मे श्रम करते हैं, उसके साथ हमे एक स्थापित करना चाहिए । इसका अर्थ यह नही, कि हम धर्मो की लक्षणहीन एकता के लिए काम करे 1 हम इस भिन्नता को नही खोना चाहते, जो भूल्यवान्‌ आघ्यास्मिक अन्तह'ष्टि को वेरती है 1 चाह पारिवारिक जीवन मे हो, या राष्ट्रो के जीवन मे, या आध्यात्मिक जीवन मे, यह भेदो को एक सराय मिलाती है, जिससे कि प्रत्येक की सत्यनिष्ठा बनी रह सके । एकता एक तीन्र ययाथं होना चाहिए, मात्र मुहावरा नही। मनुप्य अपने को भविष्य के सभी अनुसवो के लिए खोल देता है । प्रयोगास्मक घमं ही मविष्य का धर्म है । धामिक ससार का उत्साह इसी मोर जा रहा है 1 “वर्तमान युग मे धर्मं के नाम पर अनेक विवाद चल रहे है, अनेक प्रकार के संघर्ष सामने आ रहे है। ऐसी बात नही है कि असी वतमान मे ही यह्‌ विवाद सौर सधं उमर जाए है, प्राचीन मौर बहुत प्राचीन काल से टी धमं एक विवादास्पद प्रश्न रहा है। घर्मं के स्वरूप को समझने मे कुछ भूलें हुई है । मूले प्रन यष है कि घ॒र्मं क्या है ? अन्तर्‌ मे जो पवित्र माव-त्तरगें उठती हैं, चेतना की निमल घारा वहती है, मानस मे शुद्ध सस्कारो का एक प्रवाह है, 1 डॉ राषघाकृप्णन कृत 'आधुनिक युग में धर्म'---प० ६४-६५ ।




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