जिन ज्ञान दर्पण १ | Jin Gyan Darpan 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jin Gyan Darpan 1 by महालचन्द वयेद- Mahalchand vayed

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about महालचन्द वयेद- Mahalchand vayed

Add Infomation AboutMahalchand vayed

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ७ ) मुधारस निर्मल ध्यायन ॥ पास्या केवल नाग ॥ वागा मरम घर जन वहू तारिया | 1तसिर हरय जग माग | मु०॥२॥ फटिक सिंहासग जिनजी फावता | तम आशोक उदार | छच चासर भामंडल भलकतो | सुर ददुभि सिणकार | सु० ॥३ ॥ पुष्प विष्टि वर मुर घ्वनी दौपती ॥ साहिव जग सिणगार ॥ अनंत ज्ञान दर्शन सुख वल घर ॥ ए दाद्ण गुगा ग्रीकार ॥ सु० ॥ ४ ॥ वाणी अमी सस उपशस रस भरी ॥ टुगंति নল कपाय | शिव सुखना अरि शब्दादिक कच्या | जग तारक लिन राय ॥ सु० ॥५॥ अंतर जामीर शरण आपरे ॥ हु' थायो अवधार | जाप तुमारोर निश दिन ससर | भशरगागत सुरकार | मु०॥ € ॥ संवत उगगीसंरे मुदि पर्त भाद्रवे। वारस संगलवार | सुमतिजिगेप्रवर तन লক रव्या | आनन्द उपना अपार | सु ॥ 9॥ प्रदम जिनस्तवन्‌ । ( किदवेगी देगी हे सुणनगते वगपनतके परेशी ) লিন তা जिसा प्रभु । पद्म प्रभु पीढागण + सथ- से लीधो दिए मम | पाया चोश्ोनाण। णद प्रभ नित्य समरियि | $ | ए ग्रांकगी। ध्यान शुक्र प्रभु




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now