सरल गुरु ग्रन्थ साहिब | Saral Guru Granth Sahib

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Saral Guru Granth Sahib by जगजीत सिंह - Jagjit singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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होता है, सुबह-शाम 'गुरु ग्रंथ साहिब' का पाठ, कथा और कीर्तन होता है। गुरुओं के प्रकाश उत्सव, शहीदी दिवस, परलोक गमन दिवस मनाए जाते हैं तथा बेसहारों को सहारा दिया जाता है। सिखों के अनेक गुरुद्वारों के साथ सिख धर्म का इतिहास जुड़ा हुआ है। ऐसे गुरुद्वारों को ऐतिहासिक गुरुद्वारे कहा जाता है। इनका प्रबंधन कानूनी रूप से बनी हुई समितियाँ चलाती हैं। जैसे--पंजाब के ऐतिहासिक गुरुद्वारों की प्रबंध व्यवस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एस.जी.पी.सी.) और दिल्ली के ऐतिहासिक गुरुद्वारों की प्रबंध व्यवस्था दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डी.जी.पी.सी.) करती है। भारत तथा भारत से बाहर अन्य देशों में जहाँ-जहाँ सिख गुरु गए, उनकी याद में वहाँ भव्य गुरुद्वारे कायम हैं । इनमें सबसे प्रसिद्ध तथा प्रमुख है अमृतसर का हरिमंदिर साहिब, जो पूरे विश्व में स्वर्ण मंदिर (गोल्डन टेंपल) के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण पाँचवें गुरु श्री गुरु अर्जनदेव ने करवाया । संवत्‌ १६४० विक्रमी में गुरुजी ने हरिमंदिर साहिब की नींव एक मुसलमान पीर साँई मियाँ मीर से रखवाकर सर्वधर्म समभाव की एक आदर्श और अनूठी मिसाल कायम की। धर्मनिरपेक्षता की दूसरी मिसाल गुरु अर्जनदेव ने कायम की हरिमंदिर साहिब की चारों दिशाओं में चार द्वार बनवाकर। ये चार द्वार इस बात के प्रतीक थे कि हरि के इस मंदिर के चारों दरवाजे चारों वर्णो (यानी क्षत्रिय, वैश्य, श्र ओर ब्राह्मणं) के लोगों के लिए खुले रहेंगे और धर्म, जाति, भाषा, वर्ण आदि के नाम पर यहाँ किसीके साथ कोई भेदभाव नहीं होगा । उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में महाराजा रणजीत सिंह ने हरिमंदिर साहिब को सोने से मढवाया। तभी से यह पवित्र स्थल ' स्वर्णं मंदिर' के नाम से लोकप्रिय हो गया। सिख धर्म के कुछ अन्य प्रसिद्ध ऐतिहासिक गुरुद्वारे हैं--ननकाणा साहिब (पाकिस्तान में गुरु नानकदेव का जन्म-स्थान), डेरा साहिब (लाहौर में गुरु अर्जनदेव का शहीदी स्थान), गुरु की वडाली (अमृतसर में छठे गुरु श्री गुरु हरिगोबिंद का जन्म-स्थान), गुरु के महल (अमृतसर में नौवें गुरु श्री गुरु तेगबहादुर का जन्म-स्थान), शीशगंज (दिल्ली में गुरु तेगबहादुर का शहीदी स्थान), गुरुद्वारा रकाबगंज (दिल्ली, गुरु तेगबहादुर के धड़ का अंतिम संस्कार यहीं हुआ), फतेहगढ़ साहिब (सरहिंद, गुरु गोबिंद सिंह के दो छोटे साहिबजादों--बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह--को यहाँ जिंदा दीवार में चिनवा दिया गया) और बाला साहिब (दिल्ली, बाला प्रीतम के नाम से पूज्य आठवें गुरु गुरु हरिकृष्णजी के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार यहीं हुआ) । पोच तख्त फारसी भाषा के शब्द ' तख्त ' का अर्थ है शाही सिंहासन । सिख धर्म के पाँच तख्त है- व< -- सरल गुर गंय साहिन ¢ १९ - ग्ध




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