दाम्पत्य विज्ञान | Dampatya Vigyaan

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Dampatya Vigyaan by हजारी प्रसाद द्विवेदी - Hazari Prasad Dwivedi

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हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।

द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दम्पथ- विजन चाहिये । पर जिस अभागे देशमें अब वारद चषंकी बालिका दो सन्तानोंकी जन्मदाता तथा सोलह च्णका पुरुष दो सन्तानों- का पिता होने लगा है, बहाँ इस किशोरावस्था निवमोंका < पालन तो एक चिड़म्बना-माज रह गया है 1 किशोरावष्वाकी स्वाभाविक गति चश्चल है। जिस तरदद पवनके कऋकोरसे चृक्ष हिल उठता है, अथवा एक साधारणसा कम्पन दोनेसे समस्त पर्वत-प्राम कसम्पित हो जाता है, उसी तरह इस किशोरावस्थामें जरा भी मनोवृत्ति- योंमें धक्का लगनेसे--यह धक्का चाहे परिस्थितिका हो या स'गतिके प्रभावका--किशोर किशोरियोंफे गिर जानेका भय रहता है, क्यों कि मनोबूत्तियोंपर अधिकार रखने या दमन करने अथवा उनको किसी एक लक्ष्यकी ओर परिचालित करनेकी शक्ति उस समय उनमें नहीं रहती । यद्दी कारण है, कि इस अवस्थामें विदोेष सावधान रहनेकी भावश्यकता है । क्रमशः किशोर-किशोर्याँ ज्यों ज्यों अपनी जीवन- यात्रामें अग्रसर होती जाती हैं--ज्यों ज्यों उनकी उप्र चढ़ती जाती है, व्यों त्यों वे इन मनोभावोंके भीतर अग्रसर होते जाते हैं, उनकी प्रकृति, उनका मन--एक वह पदाथ खोजने लगता है, जिसको उसका परत साथी कद सकते । इस तरद यदद अवस्था क्रमशः यौवनमें जा पहुं चती है । [ ६




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