पुरुषार्थ | Purusharth

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Purusharth by जगन्मोहन वर्मा - Jaganmohan Verma

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बाबू जगनमोहन वर्मा जी का जन्म सन् 1870 ई ० में हुआ। वे अपने माता पिता के इकलौती संतान थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बहुत ही प्रतिष्ठित एवं शिक्षित परिवार में हुआ। वे बचपन से ही विलक्षण बुद्धि के थे। ये हिंदी शब्द सागर के भी संपादक थे। इन्होंने चीनी यात्री के भारत यात्रा के अनुवाद हिन्दी में किया। इनके पास एक चीनी शिष्य संस्कृति सीखने आया जिससे इन्होंने चीनी भाषा का ज्ञान अर्जित किया एवं उसके यात्रा वृतांत का अनुवाद किया। उनके इस कोशिश से हमें प्राचीन भारत के समय के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक को जानने में काफी मदद मिली।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| হই | जिसका प्रचार किसो देश की सीमा मात्र के भोतर होता है। एक ही देश, एक ही आचार, जो एक काल में धर्म या कालांतर में अधर् हो जाता है । यही नहीं, किन्तु कोई জম जो एक काल म गताञुगतिक रुप में धर्म होता है, दूखरे काल में अधमे ठदरता है; या वास्तविक रूप मे जो एक काल में घर्म या अधर्म होता है, काल्ांतर में अधघम या धर्म हो जाता हे। अथवा एक काम जो किसी समय गतालुगतिक ओर वास्तविक रूपमे धम हो, कालांतर में गतालुगतिऋ में धर्म बना रहे ओर वांस्तविक रूप में अधर्म हो जाय | सारांश यह है कि देशकाल के अनुसार उनमें परिवर्तन इआ करता है । | किसी समाज के संघटन ओर उस पारस्परिक सहका- सरिता के अनुसार ही जिसकी आवश्यकता उस समाज को हो, कोई क्म भत्ता या बुरा हो सकता है। समाज का संघटन सहकारिता के भेद से दो प्रकार का होता हे--एक एकतंत्र और दुखरा खर्वतंत्र | एकतंत्र समाज संघटन की आवश्यकता उस समाज की वियोधिय से रक्षा करने ओर अन्य समाजों को अपने अधघीनता में लाने के लिये पड़ती है। इसमें समाज के प्रत्येक व्यक्ति को पक प्रधान की श्रधीनता में रहकर उसकी... इच्छा के अज्जुसार काम करना पड़ता दहै) पूवे काल में प्रायः सभी जातियों को या तो आक्रमणकारी जातियों से अपनी अच्ता करनी पड़ती थी अथवा अन्य ज्ञातियों पर विज्य प्राप्त




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