बुद्धदेव | Buddhdev

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Buddhdev by जगन्मोहन वर्मा - Jaganmohan Verma

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बाबू जगनमोहन वर्मा जी का जन्म सन् 1870 ई ० में हुआ। वे अपने माता पिता के इकलौती संतान थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बहुत ही प्रतिष्ठित एवं शिक्षित परिवार में हुआ। वे बचपन से ही विलक्षण बुद्धि के थे। ये हिंदी शब्द सागर के भी संपादक थे। इन्होंने चीनी यात्री के भारत यात्रा के अनुवाद हिन्दी में किया। इनके पास एक चीनी शिष्य संस्कृति सीखने आया जिससे इन्होंने चीनी भाषा का ज्ञान अर्जित किया एवं उसके यात्रा वृतांत का अनुवाद किया। उनके इस कोशिश से हमें प्राचीन भारत के समय के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक को जानने में काफी मदद मिली।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ ) धीमी पड़ गई थी। ऋषियों का वह स्वातंत््य और पक्तपात- राहिल्य जिसने सारखत प्रदेश के रहनेवाले ऋषियों को ६ / कवष ऐल्रप ” नामक एक दासीपुत्र को वेदिक भाषा में कविता करने पर उसने घरुण से भतिज्ञा की थी फक्ि वदि भेरे कोई पुत्र होगा तो हैं उससे यज्ञ कर्पया ॥ देदवोग से उसके एक पुत्र हुआ खीर उसका गान्‌ सतोडित पदा \ सोदधित फे जन्मक्तेते दी वर्णने वार वार यत्त कर्ने কী বিষ तयादा फश्णा प्रारभ क्िवा, पर हरिश्च॑द्र उसे ठालते गए | शर॑व को लव सोदित बद्धा इश्ा লী षड भागकर जंगल भँ चदा गया} वर्षा छे वार यार ভীত ভীরু হ্দত तयादा करने से तंग खाकर राजा - हरिश्च॑द्र नें एक सड़॒फे को मोल लेकर उससे वद्त करने का निथ्वय फिया ॥+ शजी गत भाम के ऋषि के तीन प्न्न थे, झुनःपुष्छ, शुनश्शेप र शुन्लायूल । हरिश्च॑ह की ने उनसे शनभ्शेप को मोल तिया} यीः शुनश्शेप बलिदान के लिये यकतध्रप सं यांधे गए । उप्त समय अपने बचने উজ বি জী जो. परार्थनाएँ घुनपशेष ने छी पी चे मध्र सप नं धव तक्क धग्धेद क्षे पते समंडल' में मिलती हैं । পর্ন হী विश्यानिन्न क्री ने क्षप से इन्हें बचाकए अपना फूत्रिग पुत्र चनाया। यदी इतिहास कुछ घलट-फेर छे खाय चद्रकुतार जादफ में सिलता है 1 * कौषीत ब्राह्वण अ० १२ में लिखा है कि शक वार ऋषि लोग उरस्वदी के किनारे किसी सन्न मे भोजन कर रहे थे 4. कवप रेत्ृप उनदीं चति भ सोलन करने के ल्यि ला वैठा । श्छुचियों मे उसे देख कर कहा {क्षि “ कवप त दाखीपुन्न है, इन चेरे खाय न खाये 1 আহ यहां ले चला गया श्पीर योद दी दिनों नं उने कितने मन्यं की रचना कर डाली 1 ऋषियों को আন कवप को योग्यता का पता चलाते उन ल्यं चे उषे पाल जा अपने अपराध ब्दी कना-म्राथेना की खौर সবি বহি বহন अपनी पंक्षिर्ये ले लिया 1 कथप के रचे संन्न खब ठुक्त ऋग्वेद में हैं।. .




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