बेला फूले आधी रात | Belaa Phuule Apaadhiiraat

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Belaa Phuule Apaadhiiraat by देवेन्द्र सत्यार्थी - Devendra Satyarthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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$ ०३ ६ विशेष रुचि रखता था, जिनका एकमात्र उद श्य था हमारे किसानों की मौखिक परम्परा में प्रयोग होनेवाले गीतों, कविताओ्रों तथा गाथाओ्रों को एकत्रित करना । हमारी प्रामवासिनी जनता कितनी ही निर्धन और अशिक्षित क्‍यों न हो, अ्रभी उसके जीवन से कविता की विभूति का लोप नहीं हुआ--काव्य-श्रमृत का रसास्वादन, वस्तुतः यही तो लोक-कविता है-- एक भारतीय यूक्ति के शब्दों में यही तो जीवन के विष्वत्ष का मीठा फल है, जो जनता के कठिन और कठोर जीवन में थोड़े-बहुत रस का संचार कर पाता है। श्रनेक व्यक्तियों के समान एक समय मैं भी वेरागियों ओर बाउलों के गीत लिपिबद्ध करने को और अग्रसर हुआ था। इसीलिए पंजाब के इस अज्ञात गीत-संग्रहकत्तां मं मेरी रचि बद्‌ गई थी । सल्यार्थीजी ने मुझे श्रपनी योजनाएं बताई कि किस प्रकार वे समस्त भारत की यात्रा करने का ध्येय रखते हैं, जिससे वे जन-जन के मुख से सुन कर सभी प्रदेशों से श्रौर सभी भाषाओं के गोत लिपिब्द्ध कर सके | कुछु परवाह नहीं, यदि वे गीतों के शब्दों को समझ नहीं पा रहे, जब्च कि गायक उन्हें खबरों में संजोये जा रहा हो, पर सत्याथीजी में इतना पैयं है श्रोर इतना बोध भी, जिससे वे गीत के मर्म तक जा सकं, उक्रका शब्दानुवाद प्राप्त करने का उपालम्ब कर लें श्रोर इस प्रकार एक बहुमूल्य सामग्री जुगाते चले जायेँ । क्या मैं भी कुछ सुझाव रख सकता हूँ, यह बात मेरे मन में ग्रवश्य आई, जिससे सत्यार्थीजी श्र नि काय को सवांगपूणं रीति से सम्पन्न कर सके १ सत्यार्थीजी बहूत नघ्रये श्रीर इत बात के लिए उसुत्क थे कि कोई उनका पथ प्रदशन करे । उक्त समय मुके उनके संग्रह के विस्तार का पूर्ण परि- चय नष्टौ था। श्रतः मैने यह सुकाव रखा कि अच्छा होगा यदि वे इतने विशाल कायंक्षत्र को हाथ में लेकर अपनी शक्तियों का अपव्यय न करें । क्यों न वे पहले अपने प्रान्त पंजाब के कार्य पर ही अपना समस्त ध्यान केन्द्रित कर दें और अपनी शक्ति के अनुसार अ्रधिक-से-अधिक गीत लिपिबदूध कर डाले ! मुझे विश्वात या कि पंजाब-विश्व विद्यालय, पजाब सरकार या पंजाबी किसान और पंजाबी-भाषा का भला चाहनेवाली कोई सा्थजनिक संस्था उनके विशाल गीतनसंग्रह के प्रकाशन का भार अपने ऊपर ले लेगी । मैंने उन्हें बताया कि किसी एक प्रदेश का लोक-गीत-अध्ययन स्देव लोक- प्रिय होता है। पंजाबी लोक-गीतों की दिशा मे सर श्रार० सी० टेम्पल का कार्य भुलाया नहीं जा सकता | यद्यपि खेद का विषय है कि उनके संग्रह का कोई सुन्दर संस्करण सुलभ नहीं। इधर भी रामनरेश त्रिपाठी का संग्रह--कविता-




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