राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू | Rashtrapati Rajendra Babu

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Rashtrapati Rajendra Babu by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू मौलवी साह कभी तत्त पर बैठते, कभी खाट पर । लड़के ज़मीन में टाट बिछाकर बैठते | सबेरे आकर पहले का पढ़ा हुआ सवक्र एक बार आमोख्ता करना पड़ता और जो जितना जल्द आमोख्ता कर लेता उसको उतना ही जल्द नया सबक पटा दिया जातां । फिर तीसरे पहर दूसरा स॒चक्र मिलता श्रौर उसका कुछ हद तक याद करके सुनाने के बाद घंटा-डेढ़-घंटा दिन रहते खेलने के लिए छुट्टी मिलती । संध्या की फिर चिराग-बत्ती जलते किताब खोल- कर पढ़ने के लिए बैठना पड़ता । दिन के दोनों मबक याद करके फिर सुनाने पड़ते और तब हुक्म होता, किताब बन्द करो | पढ़ाई की मुसीबत सुनिये-“संध्या को जल्द नींद आती । इससे हमेशा उर रहता म कहीं भुक्ते देखकर मोलवी साहब मार न बेठं। जल्द छुट्टी के लिए दो उपाय थे । खेल-कूद मे यमुना, भाई लीडर थे ओर जल्द छुट्टी पाने का उपाय भी वही करते । पढ़ने के लिए तेल देकर दिया जलाया जाता था। जप्मुुना भाई दिन को ही कपड़े में राख या धूल बाँधकर छोटी-सी पोटली बनाकर छिपाकर रख लेते । जिस दिन दिया में अधिक तेल देखने में आता, चिराग़ की बत्ती उकसाने के बहाने, छिपाकर पोटली दिया में रख देते । वह देखते-देखत तेल सोख लेती




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