प्रांगारिक - रसायन | Prangarik - Rasayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ४ | अध्ययन किया जाता है | प्रांगार रसायन के अलग अध्ययन करने के पक्ष में तिम्न बाते कुद्दी जा सकती है । १--प्रांगारिक संग्रोगों की संख्य बहुत बड़ी है, प्रायः पाँच लाख तक अब पहु च गई है। बिना अलग अध्ययन किए इनका अच्छा ज्ञान नहीं हो सकता | २--यद्यपि प्रांगारिक संयोगों में प्रायः वे ही रसायनिक क्रियाएं प्रयुक्त होती है जो अप्रांगार रसायन में, पर कुछ क्रिग्नाएँ जैसे स्फटन (০:/50911155000), সমাবহাঃ (178०४००४ ) स्फट्न, उत्सादन ( 57७ ॥092४०0 ). प्रभागशः आसवन ( ৪০0০181 91901188100 ), प्रवाष्प आसवन ( अवण 01900119507) प्रहसित লিনা म आखबन (41561115090 900০0 50০6৫ ১78$9029 ); | द्रावांकरः ( 7081171 7207४ ), ओर बुद्बुदा क (17581080012 ) के निश्चयन ( 46६6०४४79(07 ) इत्यादि ऐसी हैँ जिनका प्रयोग प्रांगार रक्तायन में बाहुल्‍य से होता है । ३-प्रांगारिक सयोग अयनों (1075 ) में विबद्ध ( 6००००- 7०५०० ) नहीं द्ोते । इससे अधिकांश प्रांगारिक क्रियाएँ मन्द दोती हैं। ये जलछ में प्रायः प्रविल़्ीन ( ५०४०७ ) भी नहीं होते हूँ । ` ४-प्रांगारिक संयोगों के विश्केष्रण की विधाएं ( 70:9053993 ) कुछ भिन्न होती &। তি प्रांगा रिक संयोगों में केवल व्यूदाजु ভু ( 100162पथ/ (07779 ) से काम नहीं चल सकता। अनेक ऐसे संयोग हृते जिनके गुण तो एक दूसरे से स्वथा भिन्न होते हैं पर उनके व्यूद्ाणु सूत्र एक दी होते हैं | प्र:घ० 3,६ ज, १२० संयोगों छा व्यूदाणु सूत्र ই। इससे केवल व्यूदाणु सूत्रके ज्ञान से प्रांगार रसायन में, काम नहीं चल सकता | यहाँ यद्द जानने की भी.बढ़ी आवश्यकता हे कि इन संयोगों के व्यूहारु श्री में परमाणु (४४००) किस प्रकार मिले हुए हैँ । जिस सूत्र से हमें शात होता दे कि व्यूहारु में परमाणु किस प्रकार संयुक्त है. उस सूत्र को “संस्थापना सूत्र” (০০150500091




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