प्रांगारिक - रसायन | Prangarik - Rasayan
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ४ |
अध्ययन किया जाता है | प्रांगार रसायन के अलग अध्ययन करने
के पक्ष में तिम्न बाते कुद्दी जा सकती है ।
१--प्रांगारिक संग्रोगों की संख्य बहुत बड़ी है, प्रायः पाँच
लाख तक अब पहु च गई है। बिना अलग अध्ययन किए इनका
अच्छा ज्ञान नहीं हो सकता |
२--यद्यपि प्रांगारिक संयोगों में प्रायः वे ही रसायनिक क्रियाएं
प्रयुक्त होती है जो अप्रांगार रसायन में, पर कुछ क्रिग्नाएँ जैसे स्फटन
(০:/50911155000), সমাবহাঃ (178०४००४ ) स्फट्न, उत्सादन
( 57७ ॥092४०0 ). प्रभागशः आसवन ( ৪০0০181 91901188100 ),
प्रवाष्प आसवन ( अवण 01900119507) प्रहसित
লিনা म आखबन (41561115090 900০0 50০6৫
১78$9029 ); | द्रावांकरः ( 7081171 7207४ ), ओर बुद्बुदा क
(17581080012 ) के निश्चयन ( 46६6०४४79(07 ) इत्यादि ऐसी
हैँ जिनका प्रयोग प्रांगार रक्तायन में बाहुल्य से होता है ।
३-प्रांगारिक सयोग अयनों (1075 ) में विबद्ध ( 6००००-
7०५०० ) नहीं द्ोते । इससे अधिकांश प्रांगारिक क्रियाएँ मन्द दोती
हैं। ये जलछ में प्रायः प्रविल़्ीन ( ५०४०७ ) भी नहीं होते हूँ ।
` ४-प्रांगारिक संयोगों के विश्केष्रण की विधाएं ( 70:9053993 )
कुछ भिन्न होती &।
তি प्रांगा रिक संयोगों में केवल व्यूदाजु ভু ( 100162पथ/
(07779 ) से काम नहीं चल सकता। अनेक ऐसे संयोग हृते
जिनके गुण तो एक दूसरे से स्वथा भिन्न होते हैं पर उनके व्यूद्ाणु
सूत्र एक दी होते हैं | प्र:घ० 3,६ ज, १२० संयोगों छा व्यूदाणु सूत्र
ই। इससे केवल व्यूदाणु सूत्रके ज्ञान से प्रांगार रसायन में, काम
नहीं चल सकता | यहाँ यद्द जानने की भी.बढ़ी आवश्यकता हे कि
इन संयोगों के व्यूहारु श्री में परमाणु (४४००) किस प्रकार मिले हुए
हैँ । जिस सूत्र से हमें शात होता दे कि व्यूहारु में परमाणु किस प्रकार
संयुक्त है. उस सूत्र को “संस्थापना सूत्र” (০০150500091
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