आधुनिक हिंदी साहित्य | Adhunik Hindi Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर धुनिक हिन्दी साहिस्य हिन्दी साहित्य के प्राचीन और नवीन रूपों के बीच एक निश्चित विभाजन- रेखा खींचना दस्तर कार्य है । इतना अवश्य कहा जा सकता हैं कि नवंनता श्रौर के विकास में पश्चिमी भावों आर विचारों का आहत बड़ी हाथ रही है । वेसे तो अँगरेजों के आने से पहले ही देश में पश्चिमी प्रभाव दृष्टिगोचर ह लगा था किन्तु भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना के बाद भारतीय जन समुदाय--विशेषतः झंगरेजी-शिक्षित उच्चवर्गीय जन-ससुदाय--पर यह प्रभाव और भी गहरा हों चला था सामान्यतः १७४७ के प्लासी-गद्ध से झंगरेजी राज्य की स्थापना मानी जाती है । किन्दु हिन्दी प्रदेश पर झंँगरेजों की इस विजय का कोई विशेष प्रभाव न पड़ सका--केवल उत्तरी भारत का द्वार उनके लिए शव य खुल गया । उस समय तो बंगाल के केन्द्र कलकसे के सामाजिक धार्मिक श्रौर साहित्यिक जीवन में युगान्तकारी परिवर्तन हुए । १७६४ में बक्सर की लड़ाई हुई श्ौर १७६५ में ऑगरेजों को दीवानी मिली । इस प्रकार प्लासी के सातनदाठ वर्ष बाद हिन्दी प्रदेश का पूर्वी भाग श्र्थात्‌ बिदार सब प्रथम के विकार में चला गया । यदि प्लासी-युद्ध के फलस्वरूप समस्त उत्तर भारत का द्वार अंग रेजों के लिए खुल गया था तो बक्सर की लड़ाई के फलस्वरूप प्रदेश के तत्कालीन सबसे अधिक सम्पन्न आर शक्तिशाली सूचा श्वध में संधि द्वार गे - रेजों के द्ागे माथा टेक दिया । यहीं से उन्होंने हिन्दी प्रदेश में चासें श्रार श्यने राज्य की सीमा का विस्तार किया । तस्पश्चात्‌ बनारस श्र श्प०३ की लास- वाड़ी की लड़ाई के फलस्वरूप हिन्दी प्रदेश के मध्य भाग--दिल्मो श्र श्रागरे के सूबे-पर उनका अधिकार हो गया । इससे सरारठों आर फांसीसियों की को जबरदस्त श्राघात पहुंचा । राजपूताने की र्थिसतों ने भी १८८८ सके सत्ता स्वीकार कर ली थी । १८२६ में उन्होंने भरतपुर पर विजय प्राम को वध नाममात्र के लिए १८४५६ तक नवाबों के हाथ में रहा इस प्रकार पन्सीसवों शताब्दी पूर्वाद् के लगभग मध्य तक झंगरेज हिंन्दों प्रदेश में ्पने राज्य की सीमा का विस्तार करने में लगे रहें । तत्पश्चात्‌ प्ररशों के पुरनर्नियाग पर पुन डठनों ने उनका ध्यान श्ाझण्ट किया । शिक्षा तथा शासन की हॉष्टि से श्मेक प्रयोग किए गए। १८४७ की राज्यक्रान्ति के बाद देश का राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ से निकल कर सम्राट के ब्रिटिश के हाय में चला गया | नवीन शासन-व्यवस्था के कारण जिन नीतियों का व्यवहार खरा उनका प्रभाव देश-जीवन के विभिन्न चना पर पड़ना था । कंबल राजनीतिक इष्टि से ही नहीं ्रन्य कई कारणों से भी १८४७ एक महूरनपूर्ण तिथि है | इससे कुछ ही वष पूर्व में वैज्ञानिक श्रामिष्कारों का प्रचार हा था। उन्नीसवीं शताब्दी के सब से अधिक मे स्वपूणण तधिष्कारों रेल सर तार का क्रमशः १ द५४ श्रौर १८५१ में ही सूजपात हुआ । इन वैज्ञानिक श्ाविष्कारों




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