वीर - विभूति वर्द्धमान महावीर - तीर्थकर महावीर भाग - 1, 2 | Veer - Vibhuti Vardhaman Mahaveer - Teerthakar Mahaveer Bhag - 1, 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
292
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५
लोक को सच्चा मागं दिखाया हौ, वास्तव मे वह पूज्य है-
भाननीय है । पर हमें उस पुस्तक परूपणा के बारे में बहुत
कुछ जान लेना है |
बेद ग्रन्थों में जो जो विषय जिन जिन ढंगों से वर्णित
हैं, वे वास्तव में अपने ढंग के निराले और एक ही हैं। उस
समय का वह सादित्य हम सबके लिये अनुकन्णीयव जरूर
था पर उस साहित्य के सभालोचक या साहित्यज्न पण्डित
उनका वेचन, उनकी व्याव्या-अर्थ व्यब्जना श्रादि किन
रूपों में करते हैं-किस तरह वे स्वार्थान्धि टो अपने स्वार्थ
ही साधते लेकिन सांसारिक নাললাগ্পা নী ঘুলি में उनका
श्र्थ ले घसीटते हैं। दनक। विवेवन ब.रने में एक भारी ग्रन्थ
की आवश्यकता हो जाती है। थोड़ा भा विवेजन किये बिना
प्रागे बढ़न। हमारे लिये पथ प्रदर्शक नहीं क्षन सकेगा, परि-
चायक नहीं बन सकेगा, सन्वन्ध নান্হিলা टूट जायगा।
एनदर्थ यहां कुछ विवेचन केवल प्रयोगों का कर देना हमारे
लिये विशेष ज्योतिकर और समयज्ञ हों सकेंगा।
प्र्वमेघ-
अ्रहा ! देखते हुए रोमाब्च खड़े हो जाते £ कि इधर
प्रदवमेघ उज्ञ को घ्रन सवार हो रही है। अव्वमेध यज्ञ करने
बाला एक राजा है जो विश्व विजयी या राष्ट्र विजेता है,
वही यज्ञ करता है और कराने वाले ये ऋषि महोदय हैं जो
भ्रपने मन्त्रों दारा उस यज्ञ की पूति करते हैं। यज्ञ कया एक
माया का ग्रस्खाड़ा है-द रुणा का झागार है ।
सर्वत्र मानव लोगों की धूम मची हुई है। कोई वेदिका
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