आँखों देखी कहानियाँ | Aankhon Dekhi Kahaniyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ आँखों देखी कहानियाँ “साहित्यिकों की किसी बड़ी सभा में कवि मिले तो में उसका मान- मदंन करू --यही एक लछालसा अब रतन के चारों ओर लहराने लगी। कवि न अपनी प्रतिभा से सारे प्रान्त पर मोहिनी डाल दी थी। कठ- कठ म वहु गृजार करने लगा था। हृदय-ह॒ृदय में वह रस बरसाने लगा था। रतन का विक्षोभ भी बढ़ता ही गया । साहित्यरसिकों ने एक स्वर से कवि को साहित्य-परिषद' का सभा- पति चुना । कवि के दर्शनों के लिए, उसके मधर कंठ से उसकी कविता सुनन के लिए, अपने यशस्वी सभापति के स्वागत के लिए, दूर-दूर से साहित्य-प्रेमी लोग आने लगे। भरी सभा में रतन ने उस ठग से बदला लेने की ठानी । वह भी घनघोर घटा की तरह उमड़ी हुई उस सभा में उपस्थित हुई। रतन ने कवि को अपनी आँखों से नहीं देखा था 1 केवट उसकी रचना पर मोहित होकर वह उसे प्यार करने लगी थी। उस दिन सभा में एक ऊंचे मच पर कवि को आसीन देखकर वह विचलित हो उठी। | कवि सुन्दर था। उसके नंत्रों में उसके स्वभाव की गम्भीरता, ललाट पर ब्रह्मवर्य का तेज और मखाकृति मे आचरण की पवित्रता जगमगा रही थी। रतन को वह कविता में तो सुन्दर दिखता ही था, आँखों में भी सुन्दर दिखाई पड़ा । रतन के मन की क्‍या दशा थी ? क्या कोई अनुमान कर सकता है ? वह सोचने लगी--में सभा में न आती तो अच्छा था । कवि ने अपने प्रारम्भिक भाषण के अवसर पर श्रोताओं के विशेष आग्रह से अपने मुख से अपनी कविता का पाठ किया। कविता के भाव और कवि के मध्र कंठ ने मिलकर रतन को भीतर ही भीतर मसल डाला। पर स्त्री के स्वभाव मे पुरुष की अपेक्षा साहस अधिक होता हैं। रतन ने सोचा--चाहे जो कुछ हो, में जिस काम के लिए आयी हूं, उसे अदृश्य पुरा करूगी। आज में इस कवि को नीचा न दिखाऊं तो म॑ स्त्री




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