सद्धर्म विचार | Sandarbh Vichar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| भूमिका ।
वर्तमान सम्य की सभ्य प्रजा में कदाचित् हिन्दुही ऐसे
मिलेंगे कि जिन में:धर्म पुस्तकों के इतने महान समूह और धर्म
की नित्य प्रति सर्वेत्न इतनी चर्चा होने पर भी सर्वसाधारण
श्रपने धमं के वास्तव नियमो से इतने अनभिज्ञ दौ । हमारे -
यहां घर्म कार्य में जितना रुपया रोज़ खच्च होता है उतना प्रायः
कहीं नहोता। जितने विद्यालय,साधुओंके मठ ओर अखाड़े जिनमें
लाखों रुपये की सम्पत्ति है अथवा जिनके बनाने में लाखों रुपये
लगे हैं हमारे यहां हैं उतने ओर कहीं न मिलेंगे। तीर्था, उत्सचों
न्रतों और भ्राद्धों में जितता दान पुएय हम करते हैं उतना
कदाचित् कोई करता होगा। एक क्रोड़से अधिक ब्राह्मण और
५४ लाखसे अधिक साधु जिनका काम विद्योन्नति ओर घर्मो-
रति है वा होना चाहिये हमारे यहां विद्यमान हैं | बहुत सी
सभा और सोखाइटियां भी ध्म सुधार के लिये वन गद ই।
परन्तु जहां तक्र देखा जाता दै सामात्य खी पुरुषौ की धर्म
शिक्षा में कुछ अधिक उद्नति नहीं पाई जाती | उनके चित्तामें
असहिचार और मिथ्या विश्वासों का सूल वरावर जमा छुआ
हे । संयुक्त-प्रान््त में १००० स्त्रियों में केवल १.७५, पंजाब में ३.७
चंगाल में ६ पढ़ी लिखी हैं। पुरुषों में संयुक्तप्रान्त में १००० में
५६. वंगाल में ६६. पंजाब में ४२ पढ़े द्ये दै । व्रद्यणौ मेसी
शिक्षा की बहुत कमी है और १००० में चोथाई শী पढ़े लिखे
न मिलेंगे । वहुतसे ब्राह्मण जो कुछ पढ़ते हैं चह केवल जीविका '
उपार्जन थवा वाद चिवाद के लिये पढ़ते हैँ, धर्मार्थ नहीं
पद्ते, बहुत से साधु अनपढ़ रहना पढ़ने से अधिक खुखदाई
मानते हैं और यदि उनके पढ़ने का' कहीं कोई प्रवन्ध किया
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