श्री जवाहर किरणावली मोखी के व्याख्यान भाग - 21 | Shri Jawahar Kiranawali Mokhi Ke Vyakhyan Bhag - 21
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(7) 2 नीवी के व्याख्यान
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः 1
अर्थात् -~- श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करते हैं, दूसरे
लोग भा वैसा ही आचरण करते हैं | महापुरुष माने जाने वाले
लोग जों बात स्वीकार कर लेते हैं, दूसरे लोग भी सरलता से
स्वयं ही वह बात अंशीकार कर लेते हैं | इस प्रकार जो काम
हमारे उपदेश से नहीं होता वह महापुरुष के आचरण से
अनायास ही हो जाता है | सब के लिये कहा गया है +-
महाजनो येन गतः स पन्थाः ।
यानी सब तरह के वाद-विवाद को दूर करके उसी
मार्ग पर चलो जिस पर महापुरुष चले हैं | इस प्रकार
महापुरुष माने जाने वालों पर ज्यादा जिम्मेदारी है । उन्हें
सदा इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि में किसी मार्ग
पर चल रहा हूं और मुझे किस मार्ग पर चलना चाहिये ?
राजा की गणना भी महापुरुषों में है | इस कारण राजा को
भी ध्यान रखना चाहिये कि मैं कैसे काम 'कर रहा हूं और मुझे
कैसे काम करने चाहिये ? |
भगवान् अरिष्टनेमि राजपुरुष थे । वे महाराज समुद्रविजय
के पुत्र. थे | माता-पिता ने उनसे विवाह करने का बहुत
अग्रह किया, मगर वे यही कहते रहे कि समय आने पर सब
कुछ हो जायेगा | भगवान् के लिये यह अवसर आया और
विवाह रचाकर उन्हें पशु-पक्षियों की रक्षा की और सब
आभूषण सारथी को सौंप दिये । इस प्रकार की उदारता
राजपुरुष में ही होती है और इसलिये यह कहा जाता है कि
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