श्री जवाहर किरणावली मोखी के व्याख्यान भाग - 21 | Shri Jawahar Kiranawali Mokhi Ke Vyakhyan Bhag - 21

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Shri Jawahar Kiranawali Mokhi Ke Vyakhyan Bhag - 21  by जवाहरलालजी महाराज - Jawaharlalji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(7) 2 नीवी के व्याख्यान यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः 1 अर्थात्‌ -~- श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करते हैं, दूसरे लोग भा वैसा ही आचरण करते हैं | महापुरुष माने जाने वाले लोग जों बात स्वीकार कर लेते हैं, दूसरे लोग भी सरलता से स्वयं ही वह बात अंशीकार कर लेते हैं | इस प्रकार जो काम हमारे उपदेश से नहीं होता वह महापुरुष के आचरण से अनायास ही हो जाता है | सब के लिये कहा गया है +- महाजनो येन गतः स पन्थाः । यानी सब तरह के वाद-विवाद को दूर करके उसी मार्ग पर चलो जिस पर महापुरुष चले हैं | इस प्रकार महापुरुष माने जाने वालों पर ज्यादा जिम्मेदारी है । उन्हें सदा इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि में किसी मार्ग पर चल रहा हूं और मुझे किस मार्ग पर चलना चाहिये ? राजा की गणना भी महापुरुषों में है | इस कारण राजा को भी ध्यान रखना चाहिये कि मैं कैसे काम 'कर रहा हूं और मुझे कैसे काम करने चाहिये ? | भगवान्‌ अरिष्टनेमि राजपुरुष थे । वे महाराज समुद्रविजय के पुत्र. थे | माता-पिता ने उनसे विवाह करने का बहुत अग्रह किया, मगर वे यही कहते रहे कि समय आने पर सब कुछ हो जायेगा | भगवान्‌ के लिये यह अवसर आया और विवाह रचाकर उन्हें पशु-पक्षियों की रक्षा की और सब आभूषण सारथी को सौंप दिये । इस प्रकार की उदारता राजपुरुष में ही होती है और इसलिये यह कहा जाता है कि




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