प्रपन्च - परिचय | Prapanchay - Parichay

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Prapanchay - Parichay  by आचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्तशिरोमणिः - Acharya Visheshwar Siddhantshiromani:

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रपञ्न-पारिचय प्रथम परिच्छेद 100199০0005, 9০0. 1178060 01 0 ऑंफ्क्क, ঘ1)00. 1900 01 51708 %00 90610700109, 08 57819 ९, 09६ 162৪ 119, 01 7080 ৯৮ &1], ০৮৮ 10: ५४७6 १ दाशैनिक प्रक्रिया कमिक मनोधिकासका प्राकृतिक परिणाम है । जिस प्रकार कबिताकी जननी भावना या भावुकता है, उसी प्रकार दरीनकी प्रसविनी प्रतिभा है । कविता इदयकी सम्पत्ति है तो दीन मस्तिष्की उपन है । दोनोंका विकास समान रूपसे होता है । जिस प्रकार सहृदय कविका লান্বলাদুতা অহ, जीबनकी उत्थान और पतनकी घटनाकौ देखकर उससे अर्ण नहीं रह सकता, तन्‍्मय-तदाकार हो जाता है, सुख या दुःचैंकी उसी प्रबछपाराम बह जाता है, ओर जिस प्रकार मावुकताका जाकिर कविका इृदय प्रकृति देवीके सीम्य एवं सुन्दर स्वरूपमे प्रतिष्षण होगे- বাট परिवतेनोंकी देखकर चहक उठता है, उसी अकार




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