पुरस्कार | Puraskar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पुरस्कार
वैसी ही है,' कहकर सुखलता मनोयोग-पूवक अपना कार्य करती रही |
इतने में हरी नेत्र खोलकर तीण स्वर में वड़बड़ावा--महात्मा
আাঁঘী की जय [5
इस नाम को सुनकर नौकरानी कुछ कहना चाहती थी। पर
सुखलता ने वीच दी में कहा--'गेंदन की माँ, ठुम जानती हो, वह
महात्मा गाँधी कहाँ रहते हैं ?
नौकरानी इस विषय में अपनी अ्नभमिशता प्रकट करके बोली---
“मैं क्या जानू बहूजी ! जहाँ तुम, वहाँ सें । सुनते है, बड़े महात्मा हैं ।
सिर्फ एक लेंगोटी लगाकर रहते और दिन-मर चरखा कातते हैँ। जब
गाँव में आ रहे हैं, तव उनके दर्शन ज़रूर करूँगी वहूजी !
सुखलता चकिकर बोली--'गोँव में कौन आ रहे है ! गाँधीजी ?
नौकरानी ने आरचर्य से मुंह बनाकर कहा--
अरे ! प्रता ही नहीं, बहूनी ! इसका तो गाँव-गाँव में शोर हैं।
उनकी अगवानी के लिए सढ़के साफ हो रही हैं, घर लिप-पुत रहे हैं,
उचन्दा इकटा हो रहा है, और न-जाने क्या-क्या इन्तिज्ञाम है |?
मुखलता वोली--भमुझे अपने घर की ही ख़बर नहीं, फिर वाहर की
ख़बर लेने कौन जाता है ! तू देखती है, यहाँ से उठ नहीं पाती | तो
गाँधी जी कब आ रहे हैं!
आज से तीसरे दिन | ।
“चले श्यावे । सभे तो क ॒श्रच्छा नदीं लगता, गेदन क्री मा !'
कहकर वह ऑचल से.अपने नेत्र पोछ्लने लगी।
৩.
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