केन | Ken

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Ken by कृष्णनन्द गुप्त - Krishnanand Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हाँ ।” कद्ूकर जमुना सचान के नीचे गई। व्दाँ नदी के चिकने पत्थरों का ढेर लगा था। प्रह एक पत्थर ले आई। धीरज ने उसे फपड़े की एफ गाँठ में बांधकर लखनजू के दाष्तने पैर की नस पर एफ वध लगा दिया । लखनजू फो उस समय द्वोश नद्दीं था । घीरन मे फिर कद्दा--/शूल अभी घढ हो जायगा। शव मैं जाऊँ १? जमुना वोली--'देखक़र जाना । फकड़ पत्थर मन क्षय जाय 1! घीरन जाने छगा। जसुना ने फिर कह्दा--“तुमने कया पिताजी का फराहना सुन लिया था १? “हाँ। मैं सो रद्दा था ! सहसा आँख खुल गई 1” चद घत्ता गया | लप़नजू कराह् उठा और बोला--- “कौन आया था १? धबह आया था ।? 1! कोन १९ जमुना ने घीरे से जवाब दिया--“धीरज 17 “चैसे दी आ गया था ९”? [९७ ]




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