भूषण ग्रंथावली | Bhushan Granthawali

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Bhushan Granthawali by राजनारायण शर्मा - Rajnarayan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(ছি 9 कवित्व-शक्ति की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करिया! सोती हुई कवित्व-शक्ति विकसित हो उठी और वे थोड़े ही दिनों में अच्छे कवि हो गये । उन दिनों कविता द्वारा धनोपाजन का एक ही मार्ग था, राज्याश्रय । इसी मार्ग को उस समय के अनेक कवियों ने अपनाया था। भृपण के बे आई चिंतामणि सी राज्याक्रय से ही घत और सान पा रहे थे। भूषण ने भी चिन्रकूटाधिपति सोलंकी हृदयराम ভুল হর অন আগাম সন্ধা 'किया। उस म्य सल कति शार रल की ही कलिता करते थे। पर भूषण ने उस कविता-घारा सें न बह कर वीररस की चमत्कारिणी कविता प्रारंभ की । इनकी चमत्कारिक कविताओं से प्रसन्ष ही. हृदयराम सुत रुद्र' ने इन्हें कवि भ्रूषण' की उपाधि दी जेसा कि भरूपण से 'शिव- राज भूषणः के छंद-संख्या २८ मे कहा है } तमी से इनका “भूषणः नाम इतना प्रचलित हुआ कि उनके वास्तविक नाम का कहीं पता नहीं चलता । विशार-भारत की अगस्त सच्‌ १९३० ई० की संख्या मे, कवर महेन्दपारिह ने अपने एक रेखे ताया था किं त्िकर्वापुर के एक भाट से उन्हें पता लगा था कि सूषण का असछी नाम 'पतिराम! था जो मतिरान के वज़न पर होने से ठीक हो सकता है। पर अभी स्तक इस विपय में निश्चित तौर से कुछ नहीं कहा जा सकता ) ये हृदयराम या रुद्शाह सोरूकी, जिन्होंने इन्हें कवि भूषण की उपाधि देकर सदा के लिए अमर कर दिया, कौन थे, इसके विपय सें भी निश्चित तौर से कुछ नहीं कहा जा सकता । भूषण ने सोलंकी-नरेश का केवल शिवराज-भूषण के छन्द सं० २८ में तथा फुटकर छन्द संख्या ४१ (बांजि बंब चढो साजि) में ही डछेख किण है। असिकुक से चार क्षत्रियक्ुलों का जन्म हुआ कहा जाता है, जिनमें एक सोलंकी भी हैं। रुह्रशाह सोलंकी का पता तो इतिहास में नहीं मिलता पर उनके पिता झदथयरास का नास सिलछता है| ये गहोरा प्रान्त के राजा थे। गहोरा




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