शिवराज-भूषण | Shivraj Bhushan

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Shivraj Bhushan by राजनारायण शर्मा - Rajnarayan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राज-कमचारी विचार कर तथा उसके द्वारा दरबार में शीघ्र प्रवेश पाने की आशा कर उसे प्रसन्न करना उचित सममा तथा “इद्र जिमि जम्भ पर (शि० भू० छु० ४६) फड़कती आवाज म॑ पढ़ सुनाया | उसे सुनकर व्यक्ति बहुत प्रसन्न हुआ ओर उसने पुनः सुनाने को कहा । इस प्रकार १८ बार उस छुत्द को पढ़कर भूषण थक गये। उस छुद्मवेशी व्यक्ति के पुनः आग्रह करने पर भी वे अधिक बार न पढ़ सके। तब अपनी प्रसन्नता प्रकट कर तथा दूसरे दिन दरबार में आने पर शिवाजी में साक्षात्कार कराने का बचन देकर उस छुप्मवेशी व्यक्ति ने उनसे विदा ली | दूसरे दिन जब भूषण दरबार में पहुँचे तो उसी छुत्मवेशी ब्यक्ति को सिंहासन पर बैठे देखकर उनके ओआश्वय की सीमा न रही | भूषण मममत गये कि कलं श्लु सुनने वाले व्यक्ति स्ववं शिवाजी महाराज ये| शिवाजी ने मी उनका बड़ा आदर-सत्कार किया और कहा कि मैंने. यह निश्चय किया था कि आप जिलनी पार उस छुंद को पट गे, उतने ही सस्व सपय, उतने दही गाँव, तथा उतने ही हथी आपकी मेंट कहूँगा। ` কারন १८ बार वढ़ छुंद सुनाया था, अतएव £ল लाख रुपया, १८ गाँव रीर श्ट हाथी आपकी मेंट किये जाते हैं कुछ लोगों का कहना है कि भूषण ने उस छुप्मवेशी व्यक्ति को प्रथम सट के अवसर पर केवल एक ही कवित्त হত লাহ আ্বা এ बार न सुनाया था अपितु भिन्न-मिन्न ५२ कवित्त सुनाये थे, जो कि शिवाबावनी ग्रन्थ में संग्रहीत हैं । ओर शिवाजी ने उन्हें ५२ हाथी, ५२ लाख रुपये तथा ५२ गाँव दिये थे। कुछ भी हो इतना निर्विवाद है कि भूषण के कवित्त शिवाजी ने सुने अवश्य थे ओर प्रसन्न होकर उन्हें प्रचुर॒ घन मी दिया था| कहते हैं कि मूखण ने उसी समय नमक का एक हाथी লুনা कर अगउनी भाभी के पास भेज दिया । शिवाजी से पुरस्कृत होने के अनन्तर भूषण उनके दरार में




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