तुलसी सतसई सटीक [श्रीराम सतसई सटीक ] | Tulsisatsai Satik (shriram Satsai Satik)

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गोस्वामी तुलसीदास - Gosvami Tulaseedas

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वैजनाथ कुर्मी - Vaijnath Kurmi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तुलसीसर्तसरं । ६५. कारश्च .मश्च यः । रस्याकासेमयोनादः रयादीषैसखररमयः॥ मकरे ग्यञ्जनं बिन्दवः प्रणव्माययोः पुनः रेफ परद्यरूप कोटि मूथैवर्‌ प्रकाशमान श्रीरघुनाथजीके नेत्रनको तेज॑है ( यथा महा- रमायणे ) ^ तेजोरूपमयो रेफो श्रीरामाम्यककञ्नयोः । कोटिसये- : प्रकाशश्च.पर्रह्न स उच्यते ” पुनः रेफकी अकार बासुदेवको को: रन है कोटि कामसम शोभायमान सो श्रीरघुनाथजीके मुखको तेज है ( यथा ) “रामास्यमरडलस्यैव तेजोरुपं वरानने॥ कोि- कन्द्पशोभाव्यं रेफाकाये दि विद्धि च ॥ अकारः सोपि रूपश्च वासुदेवः स कथ्यते ” पुनः मध्यश्चकार बलबीयेवान्‌ महाविष्णु को कारण है सो श्रीरुनाथजीके बषस्थल को तेज है ( यथा ) “मध्याकारो महारूपः श्रीरामस्यैव वक्षसः। सोप्याकारो দা विष्णुबलं वीयैस्य कथ्यते” एनः मकारकी जो अकार दै सो महा- शम्धको कारण है सो श्रीखुनाथजीके कणिजिहुनी को तेन है (यथा ) “ मत्स्याकारो भवेदृषः श्रीरमकटिजारुनी । सोप्य- कारो महाशम्भुरुच्यते यो जगदुगुरुः ” पुनः मकारको व्यश्नन सो सामूल प्रकृति महामाया को कारण सो श्री रघुनाथजीकी इ्छाप्रत हे (यथा) “ इच्ाभ्रतश्च रमस्य मकारं म्यञ्जनं च्‌ यत्‌ । सा मूलप्रकृतिज्षेया महामायास्वरुपिणी ” इत्यादि ३७ इणे बल दोहा है॥ १६ ॥ दाह ॥ ज्ञान विराग मक्त सहः मूरति ठलसी पेखि। बरणतगात॑मतश्रनुहरत,मसाहमांबिशदाबंराख १७ ज्ञान बेराग्य भक्तिसहित श्रीरामनामकी. जो मूर्ति है तिहिको पेखि कहे देखिके जहांतक मेरी मतिकी गति है तहां तकं विशद




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