तुलसी सतसई सटीक [श्रीराम सतसई सटीक ] | Tulsisatsai Satik (shriram Satsai Satik)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
488
श्रेणी :
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गोस्वामी तुलसीदास - Gosvami Tulaseedas
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वैजनाथ कुर्मी - Vaijnath Kurmi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तुलसीसर्तसरं । ६५.
कारश्च .मश्च यः । रस्याकासेमयोनादः रयादीषैसखररमयः॥
मकरे ग्यञ्जनं बिन्दवः प्रणव्माययोः पुनः रेफ परद्यरूप कोटि
मूथैवर् प्रकाशमान श्रीरघुनाथजीके नेत्रनको तेज॑है ( यथा महा-
रमायणे ) ^ तेजोरूपमयो रेफो श्रीरामाम्यककञ्नयोः । कोटिसये-
: प्रकाशश्च.पर्रह्न स उच्यते ” पुनः रेफकी अकार बासुदेवको को:
रन है कोटि कामसम शोभायमान सो श्रीरघुनाथजीके मुखको
तेज है ( यथा ) “रामास्यमरडलस्यैव तेजोरुपं वरानने॥ कोि-
कन्द्पशोभाव्यं रेफाकाये दि विद्धि च ॥ अकारः सोपि रूपश्च
वासुदेवः स कथ्यते ” पुनः मध्यश्चकार बलबीयेवान् महाविष्णु
को कारण है सो श्रीरुनाथजीके बषस्थल को तेज है ( यथा )
“मध्याकारो महारूपः श्रीरामस्यैव वक्षसः। सोप्याकारो দা
विष्णुबलं वीयैस्य कथ्यते” एनः मकारकी जो अकार दै सो महा-
शम्धको कारण है सो श्रीखुनाथजीके कणिजिहुनी को तेन
है (यथा ) “ मत्स्याकारो भवेदृषः श्रीरमकटिजारुनी । सोप्य-
कारो महाशम्भुरुच्यते यो जगदुगुरुः ” पुनः मकारको व्यश्नन
सो सामूल प्रकृति महामाया को कारण सो श्री रघुनाथजीकी
इ्छाप्रत हे (यथा) “ इच्ाभ्रतश्च रमस्य मकारं म्यञ्जनं च्
यत् । सा मूलप्रकृतिज्षेया महामायास्वरुपिणी ” इत्यादि ३७ इणे
बल दोहा है॥ १६ ॥
दाह ॥
ज्ञान विराग मक्त सहः मूरति ठलसी पेखि।
बरणतगात॑मतश्रनुहरत,मसाहमांबिशदाबंराख १७
ज्ञान बेराग्य भक्तिसहित श्रीरामनामकी. जो मूर्ति है तिहिको
पेखि कहे देखिके जहांतक मेरी मतिकी गति है तहां तकं विशद
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